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जून 22, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इस सियासत का कहीं अंत नहीं

जीले जीले पाकिस्तान , कश्मीर बनेगा पाकिस्तान .......... जैसे नारे देने वाले लोग कश्मीर में लगभग हाशिये पर चले गए थे । कश्मीर की बदली सूरत में एक नई सोच विकसित हुई थी । भारत के प्रति कश्मीर में बदलते रुख ने पाकिस्तान समर्थित जमातों और आतंकवादी संगठनों को हासिये पर ला दिया था । कश्मीर की बदली सूरत की कामयाबी के श्रेय लेने के लिए कई लोग आगे आ सकते हैं लेकिन सबसे बड़ी कामयाबी भारत के लोगों को जाना चाहिए जिन्होंने पुरे धैर्य के साथ हुकुमतो के उल्टे सीधे फैसले को नजरंदाज किया है । नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक कश्मीर पर उनके लिए गए निर्णयों पर चर्चा के लिये यह न तो उपयुक्त जगह है और न ही उपयुक्त वक्त। मोजुदा समय में अमरनाथ श्रायण बोर्ड के एक फैसले को लेकर शुरू हुए हिंषक झड़प ,को देखें तो आप कह सकते हैं कि कश्मीर आज भी वहीँ है जहाँ ९० में थी । कश्मीर में पत्रकारिता में सक्रिय एक पत्रकार से मैंने इसकी वजह जाननी चाही तो उनका भी वही जवाब था जो शैयद अली शाह गिलानी और यासीन मालिक का था । यानि कश्मीर में यह बात लोगों के दिलो दिमाग में बैठ गई है कि अमरनाथ बोर्ड को दिए गए ४० एकड़ जमीन

नो डील वजह क्या है ?

मनमोहन सरकार की यह दलील है कि अमेरिका के साथ भारत का एतिहासिक समझौता कामयाब होता है तो आने वाले वक्त मे देश पॉवर के मामले में सुदृढ़ हो जाएगा । आप कल्पना कीजिये २ लाख किलो वाट पॉवर की जहाँ जरूरत है वहां उसे १५००० से २०००० हजार किलो वाट से पूरा किया किया जा रहाइस हालत में देश की तरक्की की बात कैसे सोची जा सकती है । लेकिन देश को जहाँ पॉवर कि जरूरत है वही सरकार चलाने वाले लोगों को भी पॉवर कि जरूरत है। ख़बर आई कि परमाणु समझौते नहीं हो पाने से दुखी प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देने का मन बना लिया है लेकिन अगले दिन कांग्रेस का कोई प्रवक्ता इसका खंडन करता है । यानि कांग्रेस को भी पॉवर चाहिए ,क्योकि कल हो न हो । तमाम सहयोगी दलों ने भी अभियान चला रखे है समझौते के लिए नहीं सिर्फ़ अपने पॉवर के लिए । सरद पवार कहते हैं कि सरकार नहीं रहेगी तो ऐसे समझोते लेकर वो क्या करेंगे । सोनिया गाँधी को त्याग कि देवी बताने वाले कोंग्रेसी आज खामोश हैं । कहा यह गया था कि सोनिया गाँधी को पॉवर से कोई मोह नहीं है इसलिए उन्होंने प्रधान मंत्री का post ठुकरा दिया । आज सवाल यह पूछ जा सकता है कि परमाणु समझौता अगर देश हित में ह