मवेशी क्लास का सफर ....सच बताने पर थरूर पर गुस्सा क्यों

विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर कब नप जाए किसी को नही पता । विपक्ष के अलावा कांग्रेस पार्टी के आला लीडरों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । आख़िर शशि थरूर का कशुर क्या था सिर्फ़ उसने क्लास के अन्तर को ही तो समझाया था । शशि थरुर ने फाइव स्टार कल्चर को ही अपना धरम और ईमान बनाया है जिसे वे स्वीकारते भी है फ़िर उनके सच बोलने की सजा क्यों दी जा रही है । उन्हें बेइजत करके फाइव स्टार होटल से निकला गया अब उन्हें आम लोगों के साथ सफर करने को कहा जा रहा है । यह सिर्फ़ इसलिए हो रहा है क्योंकि राहुल गाँधी लीडरों को बचत करने की सलाह दे रहे है । राहुल गाँधी ख़ुद ट्रेन से सफर करके इसकी पहल कर चुके है । लेकिन ट्रेन पर हुए तथाकथित पथराव के वाकये के बाद शायद ही वो दुबारा ट्रेन का सफर कर सके । सुरक्षा का सवाल है ॥ युवराज का सवाल है ,भावी प्रधानमंत्री का सवाल है । लेकिन उसी राहुल गाँधी की तमिलनाडु यात्रा में करोड़ों रूपये खर्च हो जाता है तो यह मामला नॉन इस्सू हो जाता है । राहुल की पार्टी का पैसा है राहुल गांधी उसे कैसे खर्च करता है इससे लोगों का क्या । राहुल गांधी की यात्रा पर उनकी हिफाजत के नाम पर देश की गाढी कमाई का करोड़ों रूपये खर्च हो रहे है लेकिन यहाँ कोई बचत करने की सलाह नही आरही है । भाई राहुल जी आप घर में भी बैठेंगे तब भी देश चलेगा ,फ़िर भी आप लोकप्रिय बने रहेंगे क्योंकि आप राहुल गाँधी है ।
गांधी जी ने अपनी सियासी यात्रा ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमेंट से किया था । गांधी जी ने देश के उस तथाकथित मवेशी क्लास की हालत को समझने की कोशिश की थी उनके नजदीक आने की पहल की थी । रेल सफर का आपने भी आनद लिया होगा । आप किस क्लास में आते है उसका अंदाजा भी आपने लगा लिया होगा । लेकिन आपके सफर के साथ कभी रेल मंत्री भी चलते होंगे लेकिन उनके लिए वाकायदा एक अलग डिब्बा लगाया जाता है .माफ़ कीजियेगा उसे डिब्बा नही सलून कहा जाता है क्योंकि यह मवेशी क्लास से अलग है । राजधानी दिल्ली में ब्लू लाइन और डीटीसी के सफर को आप किस क्लास में रखेंगे उसे आप तय कर लीजिये । लेकिन फ़िर भी मवेशी क्लास को लेकर बहस है । भाई सफर में लोग पैसे खर्च करने को तैयार है अपना क्लास बदले को बेताव है फ़िर उन्हें क्यों मवेशी क्लास बनाये हुए है ।
बचत करने की मुहीम में लगे लीडरों को किसीने आज तक टोका है कि विदेश यात्रा के नाम पर करोड़ों अरबो रूपये खर्च करके उन्होंने देश के लिए क्या हासिल किया है । ७८ मंत्रियो की फौज जिनका साल भर में तीन से चार बार विदेश दौरा होता है क्या कभी इन यात्राओं की उपलब्धी हमने सुनी है । हाँ साथ चलने वाले परिवारवालों ने अतुल्य भारत की फिजूलखर्ची को करीब से जरूर महसूस किया होगा । भारत सरकार के दर्जनों मंत्रालयों को लोगों ने तब जाना होगा जब उनके बड़े बड़े इस्तहार अख़बारों में chhape हुए होंगे । आख़िर इन mahkame की क्या जरूरत है । जारी है .....

टिप्पणियाँ

Kajal Kumar ने कहा…
मवेशी को मवेशी कहना कितना मंहगा पड़ा थरूर बाबू को.

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