बीजेपी का अंतर्विरोध ,कांग्रेस की सियासत और मुश्किल में आवाम


 अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में लिखा था । "मेरे प्रभु , मुझे इतनी उचाई कभी मत देना ,गैरों को गले न लगा सकूँ ..... शायद पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को यह एहसास हो गया था कि सत्ता पाने के बाद बीजेपी का न केवल रुतवा बदला है  बल्कि उसकी चाल ,चरित्र और चेहरा भी पूरी तरह से बदल गयी है । कुछ अलग दिखने की बात करने वाली पार्टी विचारधारा की दल दल में ऐसी फसती जा रही है कि उसके सामने अगर सबसे बड़ी चुनौती है तो वह विचारधारा को लेकर ही है । हालत यह है कि वाजपेयी गैरों को गले लगाने की बात करते थे ,आज पार्टी में एक दुसरे के खिलाफ तलवार भांजी जा रही है .येदुरप्पा जैसे पुराने लीडरों से पार्टी  पल्ला छुडा रही है ।क्या यह ढोंग सिर्फ ईमानदार दिखने के लिए है या फिर पार्टी कोंग्रेस के तीखे प्रहारों से आहात अपने ही लोगों से मुहं चुरा रही है .अगर बीजेपी वाकई  कांग्रेस के भ्रष्टाचार संस्कृति से अपने को अलग मानती है फिर कांग्रेस के लाखों करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार का मुकबला करने के बजाय कभी पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को कभी अपने लोकप्रिय मुख्यमंत्री येदुरप्पा को बलि का बकरा क्यों बना रही है ? छवि बचाने के लिए बीजेपी का यह अंतर्द्वंद पार्टी की साख को सबसे ज्यादा नुक्सान किया है . करप्शन के मामले में येदुरप्पा से लेकर नितिन गडकरी के मामले में जांच प्रक्रिया  है लेकिन उन्हें मीडिया प्रपंच में दोषी करार बहुत पहले ही कर दिया गया है .क्या यह बीजेपी में इसलिए हो रहा है क्योंकि  पार्टी  में बहस की गुन्जाईस जरूरत से ज्यादा है या फिर यह बहस इसलिए है क्योंकि बीजेपी  में लोकतंत्र का कुछ ज्यादा सम्मान है या फिर इसलिए कि  बीजेपी में मचा घमासान एक दुसरे की कमीज  पर लगे दाग को दुनिया के सामने ला रहा है .

कहा गया की बीजेपी पर संघ का नियंत्रण है तो क्या संघ की भूमिका उस असहाय मदारी जैसी है जिसके तमाम बुद्धिजीवी बन्दर आपस में एक दुसरे से उलझे हुए है .कहा गया कि 2014 के चुनाव में बहुमत लाने का बीजेपी का यह सुनहरा मौका था तो क्या संघ इस मौका  झटकने से पार्टी को  रोक रहा है ?
कहा गया कि बीजेपी हिंदुत्वा के अपने एजेंडे से अलग नही हो सकती । लेकिन सबसे पहले इस हिदुत्वा को लेकर आडवानी जी ने बहस का सिलसिला तेज किया था । आडवानी जी बीजेपी के हिंदुत्वा को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जोड़ने लगे उनके हिसाब से हिंदुत्वा जीवन पद्धति है यानि खास मजहब की बात से ऊपर । लेकिन उनकी इस दलील को न तो लोग पचा पाए न ही संघ से इस परिभाषा की स्वीकृति मिली । जसवंत सिंह ने पार्टी को २१ वी सदी की पार्टी बनाने के फेर में हिंदुत्वा पर ही पहला चोट किया । लेकिन सवाल यह है कि हिनुत्वा जीवन पद्धति है तो आज बीजेपी को कल्याण  सिंह से परेशानी क्यों होने लगी । क्यों गोविदाचार्य हासिये पर धकेल दिए गए . पार्टी में यह दावा किया जाता है कि यहाँ बहस की पुरी आज़ादी है लेकिन एक बार यसवंत सिन्हा ,अरुण शौरी जैसे लोग किसी मुद्दे पर बहस की मांग करते है तो उन्हें चिंतन बैठक से दूर रखा जाता है । आज देश को डायनेस्टी रूल से नफरत हो चूका है लेकिन यह बीजेपी है जो देश को यह सोचने पर मजबूर कर रही है पार्टी में चाबुक चलाने के लिए हाई कमान जरूरी है .
बीजेपी का कांग्रेसीकरण का यह नया रूप है । परिवार के रूप में इस पार्टी को गाँधी -नेहरू का साथ नही मिला बल्कि संघ की छाया में यह पार्टी पली बढ़ी ,जाहिर है संघ ही पार्टी की विचारधारा बनी । लेकिन समय के क्रम में संघ का विस्तार रूक गया और बीजेपी का कद बड़ा होता गया । जाहिर है इस पार्टी को भी एक अदद आलाकमान की जरूरत पड़ी । अब यह पार्टी तय नही कर पा रही है कि संघ के साथ चलू या आलाकमान के साथ । वाजपेयी जी का दौर ख़तम हो चुका है ,आडवानी जी का जदोजहद जारी है । लेकिन सबसे ज्यादा संघर्ष आडवानी जी के बाद कौन को लेकर है और आडवाणी सेकंड कमांड के नेताओं की मजबूरी समझते है . यानि कांग्रेस की तरह नेता कार्यकर्ताओं के बीच से नही आयेंगे नेता आलकमान चुनेगे । कांग्रेस के लोगों का मानना है कि आलाकमान पार्टी की धुरी है । उसके बगैर पार्टी में अनुशासन सम्भव नही है । कांग्रेस ने नेहरू परिवार से अलग कोई आलाकमान कभी सोचा ही नहीं है . जाहिर है नेहरू परिवार ही कांग्रेस की विचारधारा है उससे अलग पार्टी का कोई अस्तित्व नही है । बीजेपी में इसी संस्कृति को लाने की कोशिश हुई लेकिन संघ इसमें सबसे बड़ी बाधा है । संघ अपने को सामाजिक संस्था मानती है लेकिन बीजेपी एक राजनितिक संस्था है । जाहिर है राजनीती पॉवर के लिए की जाती है ,राजनीती सत्ता पाने का दूसरा नाम है लोग यहाँ समाज सेवा के लिए नही आते बल्कि उनका मिशन सत्ता पाना होता है । बीजेपी को सत्ता चाहिए और वह तय नही कर पा रही है कि सत्ता विचारधारा की ताक़त से मिलती है या जोड़ तोड़ की राजनीती से ।

मौजूदा दौर में कांग्रेस की कोई लहर नही है । कांग्रेस आज जितने सीट और मत प्रतिशत लेकर सत्ता में है उतनी सीट लेकर कांग्रेस सत्ता से कई बार बहार भी रही है  । लेकिन कांग्रेस ने हर समय लोगों को यह एहसास कराया है  कि शासन की काबिलियत  सिर्फ़ उनमे है । मोजुदा दौर में यह मौका बीजेपी के पास है लेकिन पार्टी में संकल्प शक्ति का आभाव है .देश का हताशऔर निराश  नौजवान बीजेपी से ज्यादा आज अरविन्द केजरीवाल में संभावना देख रहा है । देश के सामने जितने संकट आज है उतने शायद पहले कभी नही थे । लोगों की परेशानी उन्हें तिल तिल मरने को मजबूर कर रही है । लेकिन विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी अंतर्विरोध में उलझी हुई है । आज अगर कांग्रेस सत्ता में है या दुबारा सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है तो उसकी एक वजह सिर्फ बीजेपी है .2014 में किसी एक पार्टी का पतन होना तय है लेकिन यह तय होना अभी बांकी है की यह बीजेपी होगी या फिर कांग्रेस ...



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