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जुलाई 22, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अन्ना के आन्दोलन से आम आदमी का घटता सरोकार ?

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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए "अन्ना नहीं यह आंधी है ,मुल्क का दूसरा गाँधी है ".राजधानी दिल्ली स्थित जंतर मंतर  के हालिया धरने के बारे में इस बार कहा जाने लगा है कि "जंतर मंतर छू मंतर". यानी अन्ना का जादू इस दौर में ख़तम हो चूका है . जे पी के सम्पूर्ण क्रांति के बाद पहलीबार अन्ना ने इस देश में जनांदोलन से नयी  पीढ़ी  का परिचय कराया था .पिछले साल     महज दो दिनों के अंदर जंतर मंतर ने  तहरीर चौक का रूप ले लिया था . अन्ना हजारे का आमरण अनसन राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन गया था  .हर शहर के चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की उमड़ी भीड़ सरकार को यह बता रही थी ,कि सब्र का पैमाना अब टूट चूका है .तो क्या  इस बार अन्ना के अनोलन से लोगों का मोहभंग हो चूका है ? मिडिया में  खबर के नाम पर  बार बार  लोगों की मौजूदगी पर सवाल उठाया  जा रहा है,भीड़ नहीं जुटने की वजह लोगों की बेरुखी बताया जा रहा है . तो क्या यह माना  जाय कि पिछले साल यह जन आन्दोलन मिडिया प्रायोजित था इस बार इसे वही मीडिया फ्लॉप साबित करने में लगा है .सरकार की ओर से य