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दिसंबर 30, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर में" दामिनी" के साथ इन्साफ?

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भाई साहब !बलिया कहाँ है?.औटो ड्राईवर के इस सवाल ने पहले मुझे चौकाया लेकिन उसके दिमाग में चल रहे सवालो को जानने के लिए मैंने कहा उत्तर प्रदेश में ."नाक कटने से बच गयी " ऑटो ड्राईवर ने कहा मुझे लग रहा था बलिया बिहार में है और " दामिनी " बिहार की थी .इससे पहले वह कुछ और बोलता ,मैंने उसे टोकते हुए कहा ,भाई वह देश की बेटी थी ,वैसे भी बलिया बिहार का बॉर्डर इलाका है ,भाषा और संस्कृति से एक है .जी !सब कुछ ठीक है लेकिन घर का मामला थोडा ज्यादा शर्मिंदा करता है ड्राईवर ने कहा .मै उसके जवाब से सन्न था  .16 दिसंबर की रात जब देश की बेटी (जिसे ज़माने ने "अवला " का नाम दिया था मौजूदा दौर में मिडिया ने उसे "दामिनी "निर्भय जैसे कई नाम दिए है ) मदद के लिए गुहार लगा रही थी ,आधुनिक कौरवों के चीरहरण से व्यथित पीड़ित बेटी समाज को कृष्ण बनने के लिए दुहाई दे रही थी लेकिन मदद के हाथ कही से नहीं बढे, क्योंकि  वह अपने घर की बेटी नहीं थी .यह इन्द्रप्रस्थ है आज दिल्ली बन गयी है लेकिन यहाँ कौरब कल भी थे और आज भी है सिर्फ भूमिका बदल गयी है . जाड़े की ठिठुरती रात में हमारी ब