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जनवरी 20, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गणतन्त्र दिवस : कश्मीर मसले में गणतंत्र की भूमिका बढाने की जरूरत है

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64 वे गणतन्त्र दिवस के मौके पर यह तय करना जरूरी है कि हमारा लोकतंत्र 64 साल का बुढा हो गया है या इस उम्र में भी 64 साल का शैशव दिखता है .गणतन्त्र के संस्थापको ने जिस जिम्मेदरी से हमें एक संविधान दिया और उसपर चलने का हमसे वचन लिया था ,क्या हम उस उम्मीद पर खड़े उतरे हैं .लोकतंत्र के  एक दो स्तंभ को छोड़कर बाकी सभी सतून दरकते नजर आ रहे है।हमारे तमाम तारीखी धरोहर पर यह आरोप लगते हैं कि उसमे नए ज़माने के साथ बदलाव की जरूरत है लेकिन हमने यह पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझी कि बदलाव हमारे सोच में हुई है और इस सोच में मुल्क का सवाल ,मर्यादा का सवाल ,सहिष्णुता का सवाल ,भाईचारे का सवाल पीछे छूट गया है .भारत -पाकिस्तान के बीच बढे तनाव के बीच कई मुद्दे एकबार फिर चर्चा में है .यह मीडिया की समझदारी कहिये या बडबोलापन मुद्दे को भड़का कर सरकार और व्यवस्था को दोड़ने के लिए मजबूर जरूर कर देता है लेकिन ऐसे कई सवाल है जिन पर मीडिया समाज को जोड़कर एक राय बना सकता है . सरकार के सामने पहल के लिए विकल्प दे सकता है लेकिन ऐसे मुद्दे पर सशक्त चौथा स्तम्भ खामोश है .मसलन जम्मू कश्मीर में धारा 370 और संयुक्त राष्ट