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गिलानी साहब भी नमो नमो ?

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"राज करेगा गिलानी " हम क्या चाहते आज़ादी जैसे नारों  की आवाज़ कश्मीर में धीमी क्या पड़ी कि अचानक सईद अली शाह  गिलानी को नरेंद्र मोदी में एक मुस्तकविल नज़र आया। सो उन्होंने  सोसा छोड़ा कि नरेंद्र मोदी का दूत उनसे मिलने आया था।  टी वी चैनलों ने इसे हाथो हाथ लिया और चल पड़ी खबर धार -धार विश्लेषणों के साथ। किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं कि कौन था वह दूत, क्या नाम था ? बस खबर थी की दो कश्मीरी पंडित आये थे। यानी नरेंद्र मोदी  जादू का वह झप्पी है जिसका उपयोग हर मर्ज के लिए किया जा सकता। तमाम सेक्युलर दलों ने एक स्वर से नरेंद्र मोदी से सफाई मांगनी शुरू कर दी ,मोदी का यह दुःसाहस कि कश्मीर के  एक निहायत सेक्युलर लीडर से बात करे ,मोदी ने आखिर ऐसी जुर्रत क्यों की ? एक धर्मनिरपेक्ष जम्मू कश्मीर रियासत में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई ?बला ,,बला.. लेकिन इस बहस के बीच आकर  हुर्रियत के सबसे बड़े मौलवी मीरवाइस उमर फारूक ने  गिलानी साहब के गुब्बारे  की हवा  निकाल दी। हुर्रियत के चैयरमेन उमर फारूक ने इसे गिलानी साहब का वकबास करार दिया। इन अलगाववादी लीडरो का मानना था कि गिलानी कश्मीर में भ्रम फैला