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सितंबर 7, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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"कश्मीर में लालच की बाढ़ " कहा जाता है कि पिछले साठ वर्षों में ऐसी बाढ़ कश्मीर में नहीं आई थी। जम्मू कश्मीर से दूर बैठे टीवी देख रहे  लोगों को यह यकीन नहीं  हो रहा था कि बाढ़ का  यह दृश्य जम्मू कश्मीर का है या फिर बिहार का। सरकारी आंकड़े १६० लोगों की मौत और १५०० सौ से ज्यादा गाँव प्रभावित होने की पुष्टि करता है जबकि बतया जाता है कि वादी में ३९० गाँव पूरी तरह से जलमग्न है। राजधानी श्रीनगर में घरों के दरवाजे पर दस्तक देकर पानी ने  प्रलय का संकेत दे दिया है। बिहार में बाढ़ की विभिषिका केंद्र और राज्यफ्लड  सरकारों के ढुल मूल रवैये से पैदा हुई है जबकि कश्मीर में यह जल प्रलय लोगों की लालच और भ्रष्ट तंत्र के बीच अनैतिक संबंधों को रेखांकित करता है।   गृहमंत्री के बाद प्रधान मंत्री का जम्मू -कश्मीर में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी का एहसास जरूर करता है। लेकिन बाढ़ की इस विभीषिका के बीच देश के लाखों कर दाताओं को केंद्र से यह सवाल पूछने का हक़ जरूर बनता है कि पिछले वर्षों में वूलर और डल लेक से एन्क्रोअचमेंट हटाने और उसे गहरा करने का प्रोजेक्ट का  क्या हुआ