कश्मीर पर यह बकवास बंद कीजिये



अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई के बाद मचे सियासी घमासान ने यह साफ़ कर दिया है कि कश्मीर मामले में राजनेताओ के नज़रिये  में कोई   बदलाव नहीं आया है। मसले कश्मीर को लेकर लगातार नाकामी झेल चुकी कांग्रेस हर उस पहल का विरोध करेगी ,जिसे करने का साहस इस पार्टी की सरकार ने पहले नहीं दिखाया।  जाहिर है यह चुनौती बीजेपी सरकार और मोदी के लिए बड़ी है। मोदी सरकार को  आलोचना से ऊपर उठकर देश हित में फैसला लेने का जज़्बा दिखाना होगा । मसरत आलम २०१० में सबसे खतरनाक अलगाववादी लीडर के रूप में उभर कर सामने आया ,यह वह दौर था जब कश्मीर में अलगाववाद हासिये पर चला गया था। यह वह दौर था जब एक दो दशक के बाद  वादी में देशी विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा १० लाख को पार कर गया था। अमन की नयी फ़िज़ा में कारोबार बुलंदियों पर था लेकिन मसरत आलम के हुड़दंगियों   ने सबकुछ बिगाड़ दिया था। यह वादी की अनोखी सियासत थी  कि ओमर अब्दुल्लाह की सरवराही वाली सरकार पर ११७ नौजवानो के क़त्ल का अंजाम लगा और वादी में एकबार फिर ""हम क्या चाहते आज़ादी और जिले जिले पाकिस्तान " गूंजने लगा। यह वह दौर था जिसमे मसरत आलम ने ओमर अब्दुल्लाह के नाकामियो पर सवार होकर यह साबित कर दिया था कि वादी में अलगाववाद अभी खत्म नहीं हुए है। 

आज जो लोग मसरत आलम की रिहाई को लेकर हाई तोबा मचा रखे है अगर उस वक्त ओमर अब्दुल्लाह से इस्तीफा मांगते या कांग्रेस पार्टी  नौजवानो की हत्या के विरोध में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार से समर्थन वापस लेलेते तो शायद मसरत आलम पैदा ही नहीं होता। देश की संसद प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग को बर्बर कार्रवाई मानती है लेकिन वही संसद और सरकार अगर पुलिस फायरिंग पर खामोश रही  तो जान लीजिये सरकार जबरदस्त चूक कर रही है उसका खामियाज़ा उसे कभी न कभी भुगतना पड़ेगा। एक झटके में कश्मीर के   अलगाववादी नेता  भोले भाले नौजवानो को बलि का बकरा बना कर वादी में अपना खोया हुआ आधार झटक लेता है और भारत सरकार के दिल जितने के तमाम कोशिशों पर पानी फेर देता  है ,,यह शह और मौत का खेल है जिसे अलगाववादी लीडर अच्छी तरह जानते है। सैयद अली शाह गिलानी कहते है " भारत सरकार अगर सड़क पर चारकोल के बजाय सोने बिछा दे फिर भी अलगाववाद को खत्म नहीं किया जा सकता है " गिलानी कहते है कि आप विकास के नाम पर  लाखो करोड़ खर्च कर लीजिये लेकिन कश्मीर की एक चिंगारी आपके तमाम प्रयासों को बोना साबित कर देगी। मौजूदा सी एम मुफ़्ती मोहम्मद सईद इस चीज को बेहतर समझते   है।  देश के होम मिनिस्टर के रूप में वे भले ही नाकामयाब हों लेकिन जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में वे १० गेंद में ५० रन बनाने का जज़्बा रखते है।  सो आते ही उन्होंने पहला सिक्सर हुर्रियत की ओर उछालते हुए कहा कि कश्मीर में शांति पूर्वक चुनाव  श्रेय पाकिस्तान और
हुर्रियत के लीडरो को भी जाता है। बस क्या था संसद के बाहर भीतर बातो की बमबाजी होने लगी। बॉल को कही और जाना था लेकिन घायल हमारे नेता हो रहे थे।  आनन फानन में गृह मंत्री का वक्तब्य आता है "' शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय चुनाव आयोग और सुरक्षावलो को जाता है "
 चुनाव आयोग भी अपने देश के राजनेताओ से प्रमाणपत्र पाकर धन्य हो उठा होगा लेकिन हुर्रियत लीडर अली शाह गिलानी ने मुफ़्ती के इस सिक्सर को बॉउंड्री क्रॉस नहीं करने दिया  . सो उन्होंने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह बता दिया कि एक हज़ार से ज्यादा हुर्रियत की लीडर अरेस्ट किये गए कई टॉप लीडरो को घरों में नज़रबंद रखा गया। हिफ़ज़ती अमलो ने कही भी चुनाव के खिलाफ अभियान चलने नहीं दिया लेकिन मुफ़्ती सईद झूठ बोलकर लोगों को गुमराह कर रहे है।  सैयद अली शाह गिलानी कहते है "बीजेपी के साथ सरकार चलना मुफ़्ती सईद की भले ही मजबूरी हो लेकिन सॉफ्ट सेप्रेटिस्म के अपने फिलॉसफी को मुफ़्ती खोने नहीं देगा और यही बॉल  मुफ़्ती ने मसरत आलम को लेकर उछाला है। पिछले पांच वर्षो से जेल में बंद मसरत आलम पर स्थानीय पुलिस एक अदद चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई कोई क्राइम साबित नहीं कर पायी।  लेकिन फिर भी उसे आप जेल में रखना चाहते है। यह कहाँ का लोकतंत्र है यह सवाल गिलानी ही नहीं आज हर कश्मीरी पूछता है। . 

२० वर्ष बाद देश के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीर दौरे पर थे ,मेरे लिए यह गौरव की बात थी की मै उस आयोजन के कवरेज के लिए सरकारी टीम में शामिल था। पत्रकार वार्ता में किसी ने उन्हें पूछा प्रधानमंत्री अलगाववादी लीडर संविधान के दायरे में बात नहीं करना चाहते है ? उन्होंने कहा हुर्रियत लीडरों को बातचीत के लिए कौन मजबूर कर रहा है ,संविधान के दायरे में न सही इन्शानियत के दायरे में तो कर ही सकते है। पाकिस्तान को पहलीबार डिप्लोमसी में मात देकर वाजपेयी ने पूरी दुनिया में कश्मीर को लेकर उसके षड़यंत्र को एक्सपोज़ किया था। परवेज़ मुशर्रफ़ जैसे तानाशाह वाजपेयी के डिप्लोमसी का कायल था। . कश्मीर को लेकर अब कोई जंग नहीं होगा।  परमाणु संपन्न देश एटम बम नहीं चलता।  इससे भी ज्यादा इन ६६ वर्षो में कश्मीर की तीसरी पीढ़ी आज भी अगर पाकिस्तान की दुर्दशा और हुर्रियत लीडरों के दोगलई के वाबजूद जिले जिले पाकिस्तान कह रहा है तो वह आप को चिढ़ा रहा है। गिलानी से लेकर तमाम अलगावादियों का सच उन्हें पता है जरूरत है भारत के राजनेता भी कश्मीर को वाजपेयी के नजरिये से देखें और डिप्लोमेसी का जवाब टीवी बहस के जरिये देना बंद करे 
विनोद कुमार मिश्रा 

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
आपका blog अच्छा है। मै भी Social Work करती हूं।
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