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फ़रवरी 19, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय राजनीति में परिवार और उनके ब्रांड अब फीके पड़ने लगे हैं ?

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दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं राहुल गाँधी अभी पॉलिटिक्स में नौशिखुआ हैं ,उन्हें कुछ और समय दीजिये। लेकिन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी अपने बेटे तेजस्वी को अब मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं। वह दौर था जब लालू जी ने अपने घरेलु पत्नी को चाहा तो मुख्यमंत्री बना दिया ,राहुल गाँधी से कम उम्र में   उनके पिता राजीव गाँधी को  कांग्रेस  पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य माना। लेकिन आज क्या हो गया कि ओडिशा में ब्रांड बीजू धरासायी हो रहे है ,ब्रांड ठाकरे की हवा निकल रही है ,शरद पवार सही ठिकाना  तय नहीं कर पा रहे हैं। ब्रांड मुलायम को ब्रैंड अखिलेश ने  चुनौती देने की कोशिश की तो उसे मजबूरी में सहारे की जरूरत पड़  रही है।  मायावती हर चुनावी रैली में दुबारा पत्थर न लगाने की कसमे ले रही है। तो क्या भारतीय राजनीति में परिवार और उनके ब्रांड अब फीके पड़ने लगे हैं ?  2014 ने भारतीय राजनीति को जो आईना दिखया था उसे सियासतदां आज भी झूठलाने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार के चुनाव को आदर्श मानकर राजनितिक पंडित आज भी चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग को अहम् मानते हैं।

चुनावी संग्राम में कुछ दिन गुजारिये तो उत्तर प्रदेश में

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लोकतंत्र के महापर्व को  देखना है तो  कुछ दिन गुजारिये उत्तर प्रदेश में। यकीन मानिये  भारत की इस शानदार छवि को टी वी स्टूडियो से नहीं देखा जा सकता क्योंकि इस दौर में  यहाँ या तो एजेंडा चलता है या फिर शोर। आज हर कोई पूछ रहा है किस दल की बढ़त है,किसकी बन रही है सरकार। सिर्फ सवाल हैं ,उत्तर किसी के पास नहीं है।  क्योंकि ये उत्तर प्रदेश है यानी मिनी इंडिया। अहम् बात यह है कि करप्शन और बैमानी के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश की पुलिस और प्रशासन इलेक्शन कमिशन के निज़ाम के अंदर आते ही अदभुत क्षमता   दिखा रहे है यानी निज़ाम सही हो तो तंत्र को संभलने में वक्त नहीं लगता  । तीसरे चरण के चुनाव आते आते यहाँ हर दल दावा जीत का कर रहा है और पूरी ताकत लगा रखा है तो यकीन मानिये जंग के केंद्र में   सिर्फ नरेंद्र मोदी   है और जंग 2017 से भी आगे की है।  पिछले कुछ वर्षो से चुनावी भाषणों का एजेंडा मोदी तय कर रहे है ,टीवी के विद्वान कहते है पी एम् मर्यादा लांघ रहे है ,लेकिन यह समझने की जरूरत है कि मोदी के भाषणों पर सपा ,बसपा और कांग्रेस से इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों आ रही है । अगर चुनावी सभाओं में दो दिनों तक अप