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जनवरी 5, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

CAA -NPR से लेकर इंटरनेट अगर बहस मौलिक अधिकार को लेकर है तो फेक नेरेटिव क्या है ?

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किसी भी इलाके में शासन द्वारा धारा 144 लागू होने की सूचना आप सबने सुनी होगी लेकिन इसे हटा लिए जाने का ऐलान मैंने कभी नहीं सुना। शायद आपने सुना हो ! धारा 370 निरस्त किये जाने के बाद कुछ वक्त कश्मीर में मैंने भी बिताया था। आम लोगों की भीड़ में चलते हुए जहाँ कहा गया वापस जाओ रेस्ट्रिक्शन है, वापस घर लौट आया, लेकिन जुम्मा को छोड़कर घर वापस लौटने की सूरत कभी नहीं बनी। यानी जिस धारा 144 को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लम्बी चौड़ी फेहरिस्त सरकार को थमा दिया है वैसी हालत कश्मीर मैंने कभी नहीं देखी। हालाँकि इंटरनेट एक्सेस न होने से मुझे भी अपने मौलिक अधिकार का हनन लगता था ,सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मौलिक अधिकार ही माना है लेकिन उससे ज्यादा परेशानी इस बात की थी कि मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल सिर्फ फोन डायरेक्टरी की तरह हो गया था और बार बार किसी साहब के कमरे में बेसिक फोन से काल मिलाना पड़ता था लेकिन ऐसा कुछ नहीं था कि बोलने और लिखने के अधिकार पर पाबन्दी लगा दी गयी थी जैसा कि कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आज़ाद और कश्मीर टाइम्स के संपादक ने कश्मीर में शासन के रेस्ट्रिक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका