"थके हुए देश को रास्ता सिर्फ कांग्रेस दिखा सकती है"

हमारा नेता कैसा हो राहुल गाँधी जैसा हो ! कांग्रेस की महान परंपरा के बीच यह महाधिवेशन कुछ खास है। राहुल गाँधी सहित तमाम नेताओं के भाषण मोदी से शुरू होता है और आर एस एस पर ख़तम। वैसे बुजुर्ग कांग्रेसी नेता खड़गे पार्टी जनो से बीजेपी -आर एस एस की तरह काम करने की सलाह भी दे रहे थे तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या अधिवेशन में राहुल गाँधी को निर्विरोध 2019 में प्रधानमंत्री बना रहे थे। कोई रोकने वाला नहीं है .. सिद्दरामैया जानते हैं जितना 2018 का कर्नाटक चुनाव उनके लिए मुश्किल है उससे कई ज्यादा मुश्किल राहुल के लिए 2019 का चुनाव है। लेकिन गाँधी परिवार का महादरबार लगा है वहां पार्टी की समीक्षा मुश्किल है ,यही वजह है छोटे बड़े ,नौजवान ,बुजुर्ग सारे कोंग्रेसियों ने बीजेपी -आर एस एस की समीक्षा करना ही उचित समझा ।
कांग्रेस पार्टी का यह 84 वा अधिवेशन राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद संभवतः पहला इतना बड़ा सम्मेलन था लेकिन अध्यक्ष जी के भाषण में सोशल मीडिया के फेक न्यूज़ का प्रभाव ज्यादा दिखा। "देश गुस्से में है .. ,लोगों को लड़ाया जा रहा है ,जाति सम्रदायो को बाटा जा रहा है... थके हुए देश को रास्ता सिर्फ कांग्रेस दिखा सकती है"। देश और उसके युवा कभी नहीं थकते राहुल जी ! क्योंकि आज भी देश की 70 फीसद आवादी को मिहनत करके ही दो जून की रोटी मिलती है। खाने के लिए यहाँ थकना मन मना है। यह बात कांग्रेस अध्यक्ष नहीं समझ पाएंगे लेकिन यह देश इस उम्मीद में जरूर था कि देश की सबसे पुरानी पार्टी और 5 दशक तक सत्ता संभाल चुकी पार्टी अपने अनुभव का कुछ रोडमैप लेकर आएगी , अधिवेशन में देश की मौजूदा समस्याओं के लिए कुछ बेहतर सुझाव लाएगी। सनद रहे पार्टी इस अधिवेशन में अपने पांच साल की योजना पर विचार करने वाली थी लेकिन राजनैतिक प्रस्ताव अगर बैलेट पेपर से चुनाव की मांग करता है , तो कहा जा सकता है कांग्रेस पार्टी अब दूसरे क्षेत्रीय पार्टी मसलन समाजवादी और बहुजन पार्टी से अलग नहीं सोचती है।जिसका मक़सद सिर्फ अपने वोटबैंक को गुमराह करना होता है।


भारत में शायद पार्ट टाइम पॉलिटिक्स का जमाना ओवर हो चूका है। निरंतर बिना थके काम करने वाला प्रधानमंत्री से मुकाबला बार बार हॉलिडे पर जाने वाला नेता नहीं कर सकता। त्रिपुरा इलेक्शन में महज 1 दिन बिताकर राहुल गांधी अगर ननिहाल के लिए चार दिन निकालेंगे तो बीजेपी कहाँ रुकने वाली थी । गुजरात में चुनावी माहौल को गर्माने में राहुल जी इसलिए कामयाब हुए क्योंकि हार्दिक ,अल्पेश और जिग्नेश जैसे नौजवानो ने गुजरात बीजेपी के खिलाफ अपने अपने जातीय कुनबों में अशंतोष बढ़ा दिया था। वे वही जातीय कुनवे थे जिन्होंने गुजरात की समृद्धि की सबसे ज्यादा मलाई खाई है। वो अगर बीजेपी के नहीं हो सकते तो यकीन मानिये वे कांग्रेस के तो कभी नहीं हो सकते।
जातीय स्मिता को राजनीति में अपनी पूंजी बनाकर सपा ,बसपा ,आर जे डी ,डी एम के जैसी पार्टिया अपने अपने कबीलों के बीच क्षत्रप बन जाती हैं। जो महज कुछ प्रतिशत स्विंग वोट के जरिये सत्ता भी पा लेती है और सत्ता पाने की कीमत भी वसूलती है लेकिन इनसे देश बनाने का सपना नहीं देखा जा सकता। कांग्रेस पार्टी आज बीजेपी को छोड़कर किसी का समर्थन कर सकती है तो यकीन मानिये जिस स्विंग वोट के लिए राहुल जी देश को थका बता रहे हैं वो वोटर सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्टिव है वो वोट देने नहीं जाता है ,वरना गोरखपुर और फूलपुर के नतीजे कुछ और होते।
जरुरत सिर्फ राहुल गाँधी के ट्विटर हैंडल बदलने से पूरी नहीं होगी। मोदी से मुकाबले के लिए थकी कांग्रेस में उत्साह भरना होगा। जो सिर्फ मोदी के खिलाफ नफरत पैदा करके नहीं हो सकता। जबतक हर गाम हर मोहल्ले में कांग्रेस का कर्मठ कार्यकर्त्ता नहीं दिखेगा तबतक "दिल्ली दूर" है। किसी के कंधे के सहारे यह पार्टी कभी नहीं खड़ी हुई है बल्कि दूसरी रीजनल/जातीय पार्टी ने अपना कन्धा इसके बल से मजबूत किया है । कांग्रेस के बुजुर्ग यह बात राहुल गाँधी बता नहीं रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है सत्ता पाते ही कांग्रेस सबसे पहले अपने बुजुर्गों को ही बाहर का रास्ता दिखाएगी। राजनीति में कोई बुजुर्ग रिटायर्ड नहीं होना चाहता है यह बात राहुल गांधी से बेहतर कौन बता सकता है जहाँ आज भी कांग्रेस सोनिया गाँधी टीम और राहुल टीम में बटी हुई है और सोनिया जी उन्हें राहुल को नेता मानने की अपील कर रही हैं।

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