अमृतसर का हादसा और मीडिया की हताशा
शाम का वक्त ! पत्रकारों के जीवन में ऐसा कम ही मौका मिलता है जब वह अपने परिवार के साथ मार्केट में तफरी करने निकला हो। शायद मीडिया में "खुश करो " का दर्शन से मै भी अभ्यस्त होने लगा था। लेकिन तभी किसी चैनल के पुराने सहयोगी का फोन मुझे फिर अपनी पत्रकार की दुनिया में खींच लाया था । बलबीर का नंबर है ? कौन बलबीर मैंने पूछा ?अरे आपका पुराना मित्र पंजाबी चैनल वाला ,तो ! मैंने कहा .. अरे भाई साहब अमृतसर ट्रेन हादसे में दर्जनों लोग मर गए है , ट्रेन से कटकर। कुछ और नंबर जुगाड़ कर दीजिये ... मैने डिटेल जानने के बजाय पहले नंबर ही ढूँढना उचित समझा। लेकिन मन में यह सवाल भी उठ रहा था कि क्या सरकार ,प्रशासन ,पुलिस ,हॉस्पिटल की तरह मीडिया भी किसी बड़े हादसे से निपटने /रिपोर्टिंग के लिए स्किल्ड हुआ है ? क्या प्रशासन की तरह न्यूज़ चैनल्स भी सिर्फ खानापूर्ति ही नहीं कर रहे होते हैं ? या कभी कभी आपाधापी में अफसर सिर्फ मीडिया को हैंडल करन...