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कोरोना कहर के बीच स्वच्छ भारत का सुरक्षा कवच 

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कोरोना महामारी के बीच मैंने हालचाल लेने के लिए अपने एक ग्रामीण को फोन किया था।  बहुत ही भावुक शब्दों में उसने फोन करने के लिए धन्यवाद दिया था। गांव के गांव इस महामारी के चपेट में आ गए थे। सबके साथ एक ही परेशानी ,एक ही तरह का संघर्ष। बस्ती का हाल यह था कि एक दूसरे का हाल चाल लेने लोग कहीं  जाने से कतरा  रहे थे । उसने बताया मुश्किल था बचना लेकिन शौचालय/पानी  की सुविधा घर में हो जाने से बार बार बाहर नहीं जाना पड़ा और घर में रहकर कोरोना को मात देने में कामयाब हो गए ।  ये उस भारत की कहानी है जहाँ 6 साल पहले तक महज 38 फीसद लोगों के पास शौचालय था बांकी परिवार खुले में शौच जाने के लिए अभिशप्त थे। महज 5 वर्षों में ग्रामीण भारत में बना लगभग 11 करोड़ शौचालय जो हर परिवार के लिए इस महामारी  के दौरान लॉक डाउन और कुरेन्टाइन में सुरक्षा कवच बन गया था  । वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन भारत में हुई  इस शौचालय क्रांति  के कारण हर परिवार औसतन 50000 रुपया बचाने की बात की थी । भारत में 3 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत को रोके जाने का दावा भी किया था। कोरोना महामारी के बीच स्वछता के लिए बदली सोच ने लोगों को पहले से इम