नजरिये में फसी सियासत .....
"सारी जिंदगी बैठ के खाइये सिर्फ 40 रूपये में " गली में एक व्यक्ति जोर जोर से आवाज़ लगा रहा था। बाहर निकल कर करीब से देखा तो वह व्यक्ति लकड़ी का पीढ़ा बेच रहा था।(ग्रामीण पृष्ठभूमि में लोग पीढ़े पर बैठ कर भोजन करते हैं ) हिंदुस्तान की सियासत में आम आदमी के लिए राजनेता आज वही पीढ़ा बेच रहे हैं । यानी नजरिये की सियासत में फसे लोग गली नुक्कड़ों में लगने वाली हर उस आवाज से प्रभावित हो रहे हैं जो उसे तात्कालिक लाभ का भरोसा देती है। किसान कर्ज माफ़ी के लिए लालायित है ,मध्यम वर्ग ज्यादा से ज्यादा करों में छूट चाहता है ,अनाज से लेकर सारी चीजें सस्ती पाना चाहता है ,व्यापारी के लिए हर टैक्स उसके साथ धोखा है। सरकारी कर्मचारी/अफसर अपने लिए हर सुविधा हर चीज पक्की चाहता है ऊपरी आमदनी के साथ । नौजवान तबका रोजगार चाहता है जो उनका हक़ है । लेकिन इन चाहनेवालो में कोई यह चाहने की कोशिश नहीं कर रहा है कि मुफ्तखोरी से देश की बुनियाद नहीं बनती ,मुफ्तखोरी कभी अगली पीढ़ी के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे सकती । ऊपरी आमदनी कभी योजनाओं को जमीन पर नहीं उतार सकती। लेकिन नजरिये में फसी