कोविड 2019 : तुम कहाँ जा रहे हो भारत उस बदले गाँव में ? कल तुम यहीं लौटोगे
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक आपके बँगले में आई है ... अब मत कहना हमारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है अदम गोंडवी की ये कवितायें आज भी हकीकत है उस भारत की जिसकी एक आबादी महानगरों के दुत्कार और चालाक सियासतदानों के बेरहम सम्मान से दुखी बुद्ध के परम तत्व पाकर गाँव लौट चले हैं । 50 दिनों के तालाबंदी ने उन्हें सड़क पर ला दिया है या फिर बेदर्द ज़माने ने उन्हें तमाशा बना दिया है। दर्द ,मासूमियत ,जज्बात ,जिम्मेदारी की अनगिनत कहानियां व्हाट्सप्प से होते हुए सोशल मीडिया पर भावनात्मक हिलोरे ले रही है और देश का टेलीविजन उसमे भावना के 16 रंगों के साथ पुरे देश को उद्वेलित कर रहा है। ध्यान रहे इन तम्माम हृदयविदारक दृश्य की साक्षी पत्रकार कहीं नहीं है ,सिस्टम कहीं नहीं है सियासी लीडर कहीं नहीं है लेकिन हर के पर्सनल ट्वीट सलाह और चिंता से भरा हुआ है। यकीन मानिये इस दौर में अगर व्हाट्सप्प नहीं हो तो भारत में इस लॉक डाउन के माहौल में लव अग्रवाल और कोरोना के अलावा कोई खबर नहीं है। बड़ी खबर ,बड़ी बहस वाले बड़े पत्रकार और संपादक घरों में बैठकर अपनी