मुश्किल वक्त में ही यह देश उत्साहित दिखता है इसलिए एक दिया तो बनती है : देश के नाम
नाम में क्या रखा है ? बात पते की करने वाले मानेंगे कि नाम में कुछ न कुछ जरूर रखा है। 100 साल पहले बंगाल से चला एक नरेंद्र ने भारत की श्रेष्ठता और उसकी मानवतावादी धर्म से दुनिया को परिचय कराया था । उन्ही के उतिष्ठ भारत के संकल्प से प्रेरित एक और नरेंद्र भारत की चुनौतियों से लोहा लेने के आज चट्टान की तरह खड़ा है। जिसके एक सन्देश से 130 करोड़ जनता को अपनी ही प्रतिध्वनि सुनाई देती है।उसे फर्क नहीं पड़ता उसके आलोचक क्या कहते हैं ,उसे फर्क नहीं पड़ता उसकी अपील पर मीडिया कैसी प्रतिक्रिया देगी। उसे सिर्फ यह पता है जिन्हे बताना है वह समझ गया है। एक दिन के जनता कर्फ्यू के बाद शाम को शंख फूकते ताली बजाते भारत को देखकर कुछ लोग कहने लगे कोरोना वायरस मर गया होगा ? लेकिन वो मोदी को समझने में फिर भूल कर बैठे।आज दुनिया के अलग देशो में वही थाली और शंख फुक्ने की आवाज लॉक डाउन में आने लगी है । पिछले सौ साल के तारिख़ में झांके क्या ऐसे मुश्किल दौर से भारत सहित दुनिया का मुकाबला कभी हुआ था ? सदियों बाद भारत के सामने कोरोना एक महा प्रलय बनकर चुनौती दे रहा है और आज हमारी अस्तिव और स्वाभिमान को ललकार