किस किस को याद कर्रें किस किस को रोये आराम बड़ी चीज है मुहं ढक के सोएये। मौजूदा सियासत की यही कहानी है । बीजेपी में मंथन का दौर जारी है । कांग्रेस अपनी जीत पर फूले नही समां रही है । राजनितिक पंडित जीत हार का विश्लेषण करने में व्यस्त है । हर का अपना तर्क है ,मनो यही अन्तिम है । राजनीती इतनी क्रूर है कि जो पीछे छुट गया उसे कोई पहचानने वाला नही है । खेल पॉवर का है खेल सुर्खियों में बने रहने का है खेल सुविधा हड़पने का है । भला इस खेल में विचारधारा कोई पहचान रख सकती है । लेकिन सत्ता के खेल में आज भी बीजेपी अपनी पहचान को छोड़ना नही चाहती या यूं कहे कि उसे इस पहचान से अलग नही होने दिया जाता । बीजेपी के अन्दर ही चुनावी मुद्दे को लेकर सवाल उठ रहे है । अफज़ल को फांसी भला ये कोई मुद्दा हो सकता है , शिव राज सिंह चौहान को मलाल है कि बीजेपी ने मुद्दे उठाने में नासमझी की । अरुण जेटली कहते है कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को बार बार कमजोर कहना नादानी साबित हुई । तो बीजेपी के कई वरिष्ठ लीडर नरेन्द्र मोदी और वरुण गाँधी को तरजीह मिलने से खफा है । यानि हार के कारणों को ढूंढने के वजाय बीजेपी में एक दुसरे क