लॉक डाउन 3 : कोरोना महामारी सृष्टि की सबसे बड़ी चुनौती है क्या बिहार इसके लिए तैयार है
एक आदमी रोटी बेलता है ,एक आदमी रोटी खाता है ,एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है और न रोटी खाता है , वह सिर्फ रोटी से खेलता है। मैं पूछता हूँ यह तीसरा आदमी कौन है मेरे देश की संसद मौन है मई दिवस पर सुदामा पांडेय धूमिल याद आये तो कोरोना महामारी के बीच मजदूरों को लेकर सियासी दलों में बढ़ी बेचैनी भी याद आयी। याद आया यह तीसरा आदमी आज भी सबसे ज्यादा सक्रीय है। पिछले 40 दिनों से भारत में तालाबंदी है। अपनी अपनी जान बचाने की चिंता में लोगों ने अपने को कैद कर लिया है.,, मोदी जी के जनता कर्फ्यू से चला यह सिलसिला कोरोना मरीजों की बढ़ती तादाद और खतरों के कारण अंतहीन होते जा रहा है। बीमारी खतरनाक है और दवा सिर्फ सोशल डिस्टन्सिंग है। इस हालत में कार्यस्थल पर फिजिकल उपस्थिति देने वाले मजदूरों का क्या होगा? जान की चिंता वो कहाँ से करे जिन्हे शहरों में न तो सर पर छत है और न ही अगले वक्त की रोटी की गारंटी। कल कारखाने बंद है ,सड़क यातायात बंद है। निर्माण और सेवा बंद है फिर इन मजदूरों की चिंता शहर में किसे है ? इसलिए पुरे लॉक डाउन में मजदूरों की चिंता सबसे ज्यादा सड़को पर दिखी। राज्य सरका