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फ़रवरी 17, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पाकिस्तान ने दिलाया हमें 19 साल पुराने संसद के संकल्प की याद

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पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के एक प्रस्ताव ने भारत की संसद को सोते से जगाया है .पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने अपने एक प्रस्ताव में अफजल गुरु की फ़ासी की निंदा की है ,साथ ही संसद हमले के गुनहगार अफज़ल के डेड बॉडी को कश्मीरको सौपने  की मांग की है .पाकिस्तान असेंबली ने कश्मीर मामले में दुनिया को अपनी दखल बढाने की भी मांग की है .जाहिर है इसकी प्रतिक्रिया भारत की संसद में भी होनी थी .एक बार फिर संसद ने सर्वसम्मति से  पाकिस्तान के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया है .जम्मू कश्मीर सहित पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए संसद के प्रस्ताव ने पाकिस्तान को खबरदार भी किया है .लेकिन सवाल यह है कि  संसद अपने ही 19 साल  पुराने प्रस्ताव के आन वान और शान की रक्षा अबतक क्यों नहीं कर पायी है ? संसदीय परंपरा और जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति भारत की संसद दुनिया भर में एक विशिष्ठ स्थान रखती है .बहस और तीखी नोक झोक के बीच भारतीय संसद ने कई एतिहासिक फैसले लिए है .संसद के इन्ही संकल्पों ने देश में लोकतंत्र की महत्ता को मजब...

सियासत के चश्मे से अफज़ल की फ़ासी को मत देखिये

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 भूख हड़ताल और प्रोटेस्ट से यासिन मलिक का सियासी सरोकार है, लेकिन इस्लामाबाद में पाकिस्तान की एजेंसियों के सहयोग से आयोजित  हंगर स्ट्राईक का कुछ अलग सियासी मतलब है । अफज़ल गुरु की फांसी पर भले ही पाकिस्तानी हुकूमत देर से रद्देअमल दिया हो, लेकिन पाकिस्तान की दहषतगर्द तंज़ीमें और आईएसआई ने इसे मौक़े के तौर पर लिया।  यासिन मलिक के लिए ये सबसे बड़ा मौक़ा था कि वो हुर्रियत के दूसरे लीडरों को बता सकें कि हाफिज़ सईद से उनकी ज़्यादा नज़दीकियां  है। अलहदगी पसंद जमातो में  सियासी रुतबके का मतलब लष्करे तैयबा से दूरी नहीं, बल्कि नज़दीकी को माना जाता है। यही वजह है कि दूसरे हुर्रियत लीडरों ने हाफिज़ सईद से चोरी छिपे मिलने का बहाना ढूंढा, लेकिन यासिन मलिक ने इस मुलाक़ात को सार्वजनिक कर दिया।२३ जमातो के आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस में घमासान इस बात को लेकर मची है कि अफ़ज़ल की मौत को कैसे भुनाया जाय .  पार्लियामेंट हमले की साजि़ष पाकिस्तान में रची गयी थी, ये बात पूरी दुनिया को पता है। लेकिन हमले में मारे गए पांच पाकिस्तानी दहषतगर्दों के लिए कभी भी नमाज़े ...