अनलॉक इंडिया : प्रवासी को दुबारा बुलाने की कबायद तेज लेकिन यूज एन्ड थ्रो के नजरिये से बाहर आने की जरुरत
श्रमिक,मजदूर ,प्रवासी ,माइग्रेंट्स ,गेस्ट वर्कर्स इतने सारे नाम हैं अपने देश के इन मेहनतकशों का जो विभिन्न राज्यों में अलग नाम से पुकारे जाते हैं। जिनकी बदौलत खेतों से अन्न उपजते हैं तो कारखानों से अन्य आवश्यक वस्तुएं यानी शहर हो या गाँव हर समाज के यही लाइफ लाइन हैं। कह सकते हैं कि देश की आर्थिक धड़कन इन्ही से है लेकिन कोरोना काल ने इन्हे जो इज्जत हमने बख्सी है वह इतिहास भी याद रखेगा। सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान सरकार की ओर से दलील दी गयी कि अबतक 1 करोड़ से ज्यादा श्रमिकों को उन्हें 4450 श्रमिक ट्रेनों के जरिये अपने गनतव्य को पहुंचाया गया है। उत्तरप्रदेश सरकार ने कोर्ट को सूचित किया कि दिल्ली बॉर्डर से 7 लाख मजदूरों को अपने अपने गाँव भेजे गए हैं लेकिन बहस में माननीय न्यायलय में बार बार माइग्रेंट्स के संबोधन में ऐसा लगा कि इस देश ने अपने श्रमिकों को शायद अपना मानना छोड़ दिया है ? यह पूछा जा सकता है कि भारत के रहने वाले ये श्रमिक अपने श्रम से रोजी रोटी कमाने किसी शहर गए हों तो वे माइग्रेंट्स कैसे हुए ? भारत का वह श्रमिक केरल के किसी शहर और गाँव में श्रम कर रहा है तो व