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जनवरी 6, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यमुना बाबा

यमुना बाबा , जमुना बाबा , न जाने कितने नाम से ओ पुकारे जाते थे । समाज का हर व्यक्ति उनको अपना मानता था , ओ गरीबो के भी बाबा थे और अमीरों के भी । मुझे याद है सन् १९७६ की बात यमुना बाबा मेरे घर आये थे संयोग ऐसा था कि उसी समय ब्लोक के एक आफिसर भी आये थे । यमुना बाबा की नजर बिदिओ साहब पर गयी , बाबा छूटते ही उनका स्वागत गाली से करने लगे , सभी भौचक था हर आदमी बिदिओ साहब के चेहरे की तरफ देख रहा था मनो जल्द ही ज्वाला मुखी फटने वाली हो .... लोग बिदिओ साहब के गुस्से से वाकिफ थे , लेकिन बिदिओ साहब आगे बढ़ते हुए आये एवं बाबा के पों छू कर माफ़ी मांगी । मेरे बालमन मे कई सवाल उठ रहे थे । सबके जाने के बाद मैंने अपने पिताजी से पूछा तो उन्होने सहजता से जवाब दिया कि बाबा का कोई व्याकिगत पहचान नही है बाबा पूरे समाज की पहचान से जुडे है जाहिर कोई भी बाबा की बातों का बुरा नही मानता ... मैंने बाबा को जबसे देखा है उनकी कया मे कभी परिवर्तन नही देखा । मेरी माता जी कहती है ओ भी जब से देख रही है बाबा ऐसे ही लग रहे है । मेरे मामा जी बाबा के खास प्रशसंक रहे है ,ऐसा प्रसंसंक बाबा का लगभग हर गाव मे है । इलाके हर मंदिर

हमरालग रहब

हुन्जक हुन्ज गाम सं भागैत लोक .ट्रेन मे ठसाठस ठुसल लोक , बस के छत पर नार पुआर जकाँ पसरल लोक , कहियो अहाँ पुछिअलैक जे एतेक लोक कतई जारहल अछि। शायद नहि , लोकक ई पलायन ककरालेल चिंता के विषय भई सकैत अछि , अहाँ लेल ! शायद नहि , अहांक परोशी लेल ! शायद नहि , जाहिर अछि ई चिंता मिथिला के भई सकैत अछि ओही समाज के भई सकैत अछि । कोनो वयक्ति के शायद ही अहि सा नुकसान हो । अहांके खेती नहि भई रहल अछि त कोई बात नहि परदेश मे काज करे बाला कोनो समांग घर जरुर सम्भैल लेतः । आई तकरीबन हर घर के कियो नहि कियो लोक परदेशी जरुर छथि, अहि तरहे अगर अहांके अहि पलायन सं चिंता नहि अछि त शायद ककरोऊ नहि छैक . अहांके याद अछि आपन खेत और खलिहान , आजुक उजरल उप्तल खेत खलिहान मिथिला सं भेल पलायन के कहानी खुद बयां करि सकैत अछि .मनिओदर आई मिथिला मे कातिक के असर के लगभग खतम कई देलक अछि लेकिन एहो बात सत्य अछि जे मिथिला सं अगहोनों गायब भई गेल अछि , हमरा याद अछि किछु साल पहिले तक गाम सं आबे बाला लोक फसल के चर्चा करैत छल आई हाल चाल मे धान के चर्चा बाहर भई गेल अछि , मिथिला मे उद्योग के जरुरत छैक , मिथिला मे धन के जरुरत छैक लेकिन