कश्मीर के मसले को लेकर खामोश संसद
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हर आतंकवादी हमले के छः महीने या फिर साल भर बाद फिर शुरू होती है भारत -पाकिस्तान के बीच बातचीत की पहल .फिर शुरू होता है पुराने जख्मो को भुलाकर नयी शुरुआत का संकल्प .मुंबई हमले में हमने अपने 200 से ज्यादा अजीजों को खोया, लेकिन दोषियों पर कारवाई करने में पाकिस्तान ने कभी भी रुची नहीं दिखाई लेकिन हमारे गृह मंत्री कहते है "छोडो कल की बाते ..." मुल्क में कही भी आतंकवादी हमले हुए हों ,उनका मकसद कुछ और हो लेकिन पाकिस्तान हर बार उसे मसले कश्मीर से जोड़ता है।यानी मसले कश्मीर को लगातार सुर्ख़ियों में रखने की जो महारत पाकिस्तान ने हासिल की है उसका तोड़ कम ही देखने को मिला है . यानी बगैर आम कश्मीरियों के समर्थन के पाकिस्तान ने इन वर्षों में महज प्रोपगंडा के बदौलत कश्मीर को मसला बनाकर रखा है। क्या भारत के शासन ने कभी कश्मीरियों के मन और मिज़ाज समझने की कोशिश की ? क्या हमने कश्मीर को कभी मुख्यधारा की बहस में शामिल किया है ? लोगों ने भारी तादाद मे आकर वोटिंग की तो भारत सरकार गद -गद .खबर बनी की बन्दूक और हुर्रियत की धमकी के बावजूद कश्मीर में 88 फीसद पोलिंग दर्ज हुई .यानी भारत के समर्थ