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नवंबर 9, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इस बार हमारे जैसे पप्पू भी वोट करेंगे

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पिछले एक दसक से देश की बदली सियासत पर अगर नज़र डालें तो आप यह दावे के साथ कह सकते हैं कि सरकार बनाने का जनादेश जनता ने न तो एक सियासी पार्टी को दिया न ही किसी खास व्यक्ति को । लेकिन फ़िर भी सरकार बन रही है सत्ता का खेल हो रहा है। ये अलग बात है कि इन तमाम प्रक्रियायों में जनता कहीं नहीं है । देवेगौडा से लेकर गुजराल तक वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह तक इन्हें प्रधान मंत्री बनाने में क्या किसी मतदाता का योगदान है तो यह बात पक्की तौर पर कही जा सकती है कि इसमे जनता का, जनता के लिए ,जनता दुआरा शासन की अवधारणा बेमानी साबित होती है । एच ड़ी देवेगौडा ,आई के गुजराल प्रधानमंत्री कैसे बने ये बात बेहतर लालू प्रसाद यादव ही बता सकते हैं । अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने में २३ राजनितिक दलों का योगदान था । सत्ता से बीजेपी को बाहर रखने के लिए लेफ्ट और कांग्रेस ने २४ दलों का यु पी ऐ बनाया और मैडम सोनिया गाँधी को सत्ता सँभालने का आग्रह किया । लेकिन सोनिया जी ने त्याग का बेमिशाल परिचय देते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया । मनमोहन सिंह भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने मे