जब वी मेट !
जब वी मेट ! कुछ ऐसा ही इन दिनों सियासत में भी हो रहा। जनता की नज़रो में एक दूसरे से पूछते हैं" हम आपके हैं कौन " और नज़र ओझल होते ही तेरा साथ है तो हमें क्या कमी है ... पिछले 25 वर्षों में केंद्र और राज्यों में इसी तरह के नैतिक /अनैतिक गठजोड़ तक़रीबन 20 बार बने है और हर बार जनता जनार्दन बूढ़े संरक्षक की तरह अपने को असहाय ही पाया है। जब कुछ सियासी दल अकेला विधायक मधु कोड़ा पर सब कुछ लुटाता और बाद में उसे भरपूर लूटता है तो कभी किंग मेकर बनने वाले कुमारस्वामी किंग बन जाते है । मायावती के लिए कभी बीजेपी सबसे ज्यादा गुणवान गठबंधन होता है तो कभी ममता दी केंद्र में बीजेपी के लिए आदर्श हो जाती है। तो कभी वामपंथी और दक्षिण पंथी का गठबंधन केंद्र में कांग्रेस का अलटरनेट मंच बनता है तो कभी बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस और वामपंथी सेक्युलर गांठ जोड़ लेती है। ऐसे में कुछ सम्बन्ध जो पब्लिक में बनते है उसे जायज करार दिया जाता है लेकिन कुछ सम्बन्ध जब वी मेट वाला बनता है तो माननीय न्यायलय के सामने भी मुश्किल होता है कि इसे अनैतिक कैसे कहा जाय क्योंकि संविधान ने दूल्हे