जब मोहम्मद इक़बाल के "राम" को ढूढ़ने निकले संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत !
पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज चुका है। 2019 के लोक सभा चुनाव को लेकर राजनितिक पार्टियों से ज्यादा मीडिया सक्रिय है। चुनावी बाजार की टोह में शिकारी जाल बिछा रहे है। हर तरफ प्रपंच और झूठ वोट के लिए बेचने की कोशिशे जारी है। कहीं राम शाश्वत है तो कही मुखौटा पहन कर संविधान के संशोधन वाला सेक्युलर की धज्जिया उड़ाई जा रही है लेकिन मूल सवाल कोई नहीं पूछ रहा है कि हिंदुस्तान में हिंदुत्व और राम को लेकर बहस क्यों हो रही है ? क्या इस देश में सियासत का मतलब सिर्फ प्रपंच है और मीडिया का मतलब सिर्फ बाज़ार है? "भविष्य का भारत " राष्ट्रीय संघ का दृष्टिकोण सम्मेलन में मुझे एक सवाल संघ प्रमुख मोहन भागवत जी से पूछने का मौका मिला था। देश के बड़े बुद्धिजीवियों /सम्पादको के बीच इस सम्मलेन में मेरे जैसे पत्रकार की कोई अहमियत नहीं थी लेकिन मेरे सवाल का आधार अल्लामा इक़बाल की यह कविता थी। " लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द , सब फ़लसफ़ी है खित्ता ए मग़रिब के रामे हिन्द। ये हिन्दियो के फ़िक्रे फलक उसका है असर। इस देश में हुए हैं हजारो मालिक सरिश्त। मशहूर जिसके दम से है