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सितंबर 3, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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इनदिनों  दिल्ली के मीडिया में इतना शोर क्यों है भाई ? क्या इसलिए कि   मीडिया अपने अधिकारों को लेकर ज्यादा सजग हो गया है या फिर सोशल मीडिया ने उसकी जमीन खिसका दी है। या फिर खबरों और तर्क के आकाल में मीडिया के स्वनामधन्य एंकर  अपनी सुविधा से  नए तर्क गढ़ रहे हैं। लेकिन अपने अपने तर्कों को लेकर जिस बेहूदापन और ओछी हरकत को टी आर पी बनाया जा रहा है वह कही से लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं लगता बल्कि यह   सभ्य समाज के लिए गाली है। गौरी लंकेश की दुखद हत्या की खबर  को दिल्ली के   मीडिया ने  मसाला बना दिया। ,लोकतंत्र में आज़ादी के नाम पर देश के प्रधानमंत्री तक   को गाली देने में कोई कोताही नहीं बरती यह जानते हुए भी कि घटना कर्नाटका में हुई जवाब कांग्रेस के मुख्यनत्री सिद्धिरामय्या को देना है लेकिन सवाल नरेंद्र मोदी से पुछा जा रहा है।  यह इसलिए कि घटना के तुरंत  बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट करके इस हत्या में बीजेपी और  आरएसएस का नाम लिया था। एन डी टी वी के वरिष्ठ एंकर रवीश कुमार  कहते है यह शक इसलिए पैदा ...

देश बदल रहा है ,आगे बढ़ रहा है

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पी एम मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार से   कई भ्रम टूटे   हैं। मीडिया के कुछ वरिष्ठ लोगों का यह भ्रम कि सत्ता के अंदर और बहार की खबर वे ब्रेक कर सकते हैं। कुछ लोगों का यह भ्रम कि  सरकार अक्सर   मीडिया की नजरों से व्यक्तित्व की परख करती है। कुछ लोगों का यह भ्रम कि मंत्रिमंडल का   विस्तार  जाति और क्षेत्र से तय होता है  । कुछ बुद्धिजीवियों का यह भ्रम कि   सरकार के हर फैसले में आर एस एस का नाम जोड़कर खबरों में बहस की गुंजाइस बनायीं जा सकती है। पिछले एक हफ्ते से सोशल मीडिया मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर  जिन फेक खबरों को हवा दे रहा था। हमारे अनुभवी टीवी  पत्रकार उसे सच मानकर डंके की चोट पर और   खबर तह तक का विश्लेषण कर रहे थे।  सरकार और पॉलिसी को लेकर हमने जो फ्रेम बनाया है उसके इतर देखने समझने की सोच हमने विकसित नहीं की है। पिछले 28  वर्षो से गठबंधन की सरकार की पैटर्न हमारी सोच को लगभग कुंठित कर रखी है। जाहिर है इस फ्रेम से बाहर न तो देश के बुद्धिजीवी निकल रहे हैं न ही मीडिया और न ही नौकर...