गृह मंत्री पी चिदम्बरम की बातचीत की पहल को आतंकवादिओं ने जोर का झटका लेकिन धीरे से दिया है .मौलवी फज़लुल हक कुरैशी को गोली मारकर हिजबुल मुजाहिद्दीन ने यह भी बता दिया है कि उन्हें नज़रंदाज़ कर हुर्रियत के लीडर अपनी लीडरी नहीं चला सकते . हिजबुल के इस हमले ने हुर्रियत के लीडरों को खामोश कर दिया है . १९७१ मे फजलुल हक कुरैशी खुद एक आतंकवादी तंजीम अल फ़तेह बनाकर बन्दूक की जोर पर कश्मीर को आज़ाद कराने निकले थे . बाद में उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर जे के एल ऍफ़ ने वह मोर्चा संभाल लिया था . लेकिन कश्मीरी लीडरों की यह आज़ादी पाकिस्तान को रास नहीं आई सो उसने जे के एल ऍफ़ को धकेल बाहर किया,यासीन मालिक कश्मीर का गांधी बन गए और उनकी जगह पाकिस्तान ने हिजबुल मुजाहिद्दीन को सामने लाया . इस तरह हुर्रियत के तमाम लीडर किसी न किसी आतंकवादी तंजीम से जुड़े या फिर उनका नेतृत्वा किया ,ये अलग बात है उनकी यह गतिविधि तब तक जारी रही ,जब तक पाकिस्तान ने उन्हें ऐसा करने की इजाजत दी . इस दौर मे मौलवी मिरवैज फारूक आतंकवादी के गोलियों के शिकार हुए , मिरवैज ओमर फारूक ने न केवल अपने वालिद को खोया बल्कि उनके चाचा को आतंकवा