है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ !

  है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ !


भारत 
 में उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक  सबसे ज्यादा राम और उनकी मर्यादा पर ही लिखी गयी हैं। बाल्मीकि के राम, शबरी के राम ,निषाद राज के राम ,तुलसी के राम ,रहीम  के राम ,कबीर के राम ,रसखान के राम और गांधी के राम। अनंत लोक गाथाओं के राम। राम जिन्हें अल्लमा इक़बाल ने इमामे हिन्द कहा था। राम अयोध्या आ रहे हैं। सांस्कृतिक पुनर्जागरण  के दौर में देश के जनमानस में जो उत्साह  और उमंग बना है ,यह बता रहा है राम आ रहे हैं।
राम की नगरी अयोध्या में 2. 77 एकड़ जमीन के विवाद का मुकदमा 135 वर्षो तक क्यों चला ? शायद इस देश की सियासत और समाज के पास इसका जवाब नहीं होगा । 2009 में विवादित भूमि में लगभग 50 गज जमीन इलाहबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को भी दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में महज एक बेंच बनाने ,सबूतों को अनुवाद करने में वर्षों लग गए। कहते हैं न सब चीजे वक्त से ही तय होती है और यह सौभाग्य प्रधानमंत्री मोदी को ही मिला और उनके कर कमलो से मंदिर निर्माण का शिलान्यास हुआ और अब 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी होने जा रही है।

500 साल पुराने इस राम मंदिर आंदोलन में गुरु गोविन्द सिंह से लेकर कई धर्म गुरुओं और हजारो साधु संतो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हज़ारों लोगों ने मंदिर और राम लला विराजमान की पुनर्स्थापना के लिए अपनी कुर्बानी भी दी है। लेकिन पिछले 70 वर्षो में अदालत के अंदर और बाहर राम मंदिर के मुद्दे को प्रभावी रूप से रखने में अशोक सिंहल ,विष्णु हरि डालमिया ,गिरिराज किशोर ,रामचंद्र परम हंस ,महंत अवेद्यनाथ ,ओमकार भावे ,सदानंद काकरे ,वामदेव जी महाराज ,देवकी नंदन जी ,देवराहा बाबा ,श्री चंद्र दीक्षित ,उमा भारती ,साध्वी ऋतम्भरा जैसे अनेकों विशिष्ट नाम ,जिसमे अधिकांश आज हमारे बीच नहीं हैं। अधिकांश नामो में उन अमर शहीदों के भी हैं जिन्होंने अयोध्या कार सेवा आंदोलन में गोलियां खाई और अपने खून से सिताराम लिखकर स्वर्ग सिधार गए थे।

अपने ही देश में राम की जन्म स्थली अयोध्या में राम लला को पुनर्स्थापित करने की इस अनंत संघर्ष का आप जो भी नाम दें। लेकिन राम मंदिर आंदोलन ने देश के छद्म धर्मनिरपेक्षता को देश और दुनिया के सामने बे पर्दा कर दिया था।
1885 से शुरू हुआ राममंदिर आंदोलन के क़ानूनी विवाद में कई मोड़ आये लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता उसी राम लला विराजमान को दिया जिस राम लला को पूरी दुनिया मूर्ति में भी सजीव राम को देखती है।
1989 में लाल नारायण सिन्हा (सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे थे) ने ही पहलीबार विश्वहिन्दु परिषद् के सामने रामलला विराजमान को एक सजीव पक्ष बनाने की पहल की थी। राम लला विराजमान के पहले वकील भी बिहार से ही रविशंकर प्रसाद थे
करोडो लोगों की आस्था को भारतीय कानून भी न्यायिक व्यक्ति मानता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिसमे प्रतिष्ठापित मूर्ति के खिलाफ मुकदमा चला है। यही वजह है कि तमिलनाडु के विद्वान वकील के परासरन ने धर्म ,अध्यात्म ,ऐतिहासिक साक्ष्य के साथ राम लला की जोरदार पैरवी की तो इनके तर्क और सबूत के सामने सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवादियों में कपिल सिब्बल जैसे वकीलों के तर्क टिक नहीं सका । राम लला विराजमान के वकील परासरण जी के तर्कों और ठोस सबूत से हर दिन संविधान पीठ अचंभित होती थी।

92 वर्ष की आयु वाले प्रतिष्टित्त वकील परासरण जी ने कहा था यह उनके जीवन की आखिरी ख्वाइस है। अन्ततः सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा सभी पक्ष के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मंदिर परिसर से बाहर 5 एकड़ जमीन देने की सिफारिश की । खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सर्व सम्मति से सुनाया और हर जज इस फैसले के लेखक बने।
विद्वान न्याधीशो ने शायद पहलीबार अपने विवेक और कानून को आधार बनाकर भारत का गौरव बढ़ाया।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ अब सबके राम के नैरेटिव बनने लगे हैं। लेकिन यह सवाल उनके सामने खड़ा है कि  वर्षो तक  सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मामले में यह क्यों एक डेट तय नहीं कर पाई ?  टाइटल शूट विवाद कौन सी बेंच सुने इसे लेकर सुप्रीम अदालत में 9 साल मुकदमा चला । आखिरकार कोर्ट में यह संशय किसने बढ़ाया कि  भावना से जुड़ा यह मामला हर पक्ष को संतुष्ट नहीं कर पायेगा? फिर इलाहबाद हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इतने वर्षों तक क्यों रोका गया ? क्यों हिन्दू ट्रस्ट और मंदिरों के 67 एकड़ जमीन पर निर्माण कार्य को रोका गया? उनकी जमीन को इतने वर्षों तक सरकारी कब्जे रखने का क्या औचित्य था ? ऐसे अनगिनत सवाल हैं जिसका जवाब सिर्फ इस देश की वोट बैंक की सियासत में ढूंढा जा सकता है। 
100 साल की अदालती लड़ाई के बाद जब केस सुप्रीम कोर्ट में सुना जा रहा था तो एक दिन जजों की पीठ ने  परासरण जी से पूछा आप इतने बुजुर्ग हैं और खड़े होकर अपना पक्ष रखते हैं। इसे आप अगले दिन भी रख सकते हैं। 
परासरण जी ने कहा था मी लार्ड मैं 92 वर्ष का हो चूका हूँ और मेरे जीवन का उद्देश्य अब  सिर्फ राम लला विराजमान का भव्य मंदिर  है। सबूत जुटाने में 100 साल से ज्यादा लगे हैं मेरे बाद अब यह इंतजार ख़तम होना चाहिए। सियासत में फसी अयोध्या और  राम लला के लिए  इस देश में लोगों के साथ कैसा जुड़ाव है इसे छद्म धर्मनिरपेक्षता की आड़ में बहस में लाकर नहीं समझा जा सकता है। उस  मर्यादा पुरुषोत्तम राम को  जिनका जीवन ही पंथनिरपेक्ष रहा है,संघर्ष से भरा उनका जीवन आज भी समाज का आदर्श है । अलम्मा इक़बाल जब राम को इमामे हिन्द कहते हैं तो राम सेक्युलर हो जाते हैं लेकिन बाल्मीकि और तुलसी दास जी के  राम सेक्युलर वाली बहस का हिस्सा हो जाते हैं  ? 

राम लला मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में निमंत्रित नेताओं में सेक्युलर बुखार अबतक चढ़ा हुआ है जिनका सरोकार वोट से है। आप राम को या कृष्ण को ईश्वर माने या न माने यह आपकी आस्था पर निर्भर है। लेकिन राम ,कृष्ण इस देश के पुरखे हैं ,उनके विमर्श और आस्था को प्रतिविम्बित करते हैं। उनके राम और कृष्ण के अस्तित्व को ख़ारिज कैसे किया जा सकता है।  अयोध्या को सजाने सवारने का काम जोर शोर से चल रहा है  राम की भव्यता का एहसास आने वाले श्रद्धालुओं को अयोध्या प्रवेश के साथ मिले इसकी तैयारी चल रही है।  चुनौतियों  के बीच आज भी गाँधी जी और  महामना को याद किया जा सकता है। देश के धार्मिक स्थल करोडो लोगों के भावना से जुड़े होते हैं लेकिन ये लाखों  लोगों के लिए रोजगार के प्रमुख साधन होते हैं।  इस देश की प्राचीन परम्पराओं ने अर्थ के बाद ही धर्म और मोक्ष की चिंता की है. जाहिर है राम में एकबार फिर लाखों भारतीय अपने अर्थ ,धर्म और मोक्ष को ढूंढने अयोध्या आने लगे हैं। आज अयोध्या में महर्षि बाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट है ,भव्य अयोध्याधाम रेलवे स्टेशन है। राम राज का एहसास कराती अयोध्या की गलियां ,चौक चौराहे सजे हुए हैं। लेकिन ध्यान रखना जरुरी है कि राम शबरी के भी उतने ही थे जितने निषाद राज के और वनवासी के। सबका राम सबके लिए सुलभ हों ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए। सादर ,विनोद मिश्रा 


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