सरकार-सरकार के खेल में कौन जीतेगा ?
अपने पप्पू यादव जेल से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस लेंगे। शाहबुद्दीन और अतीक अहमद को लोकतंत्र की रक्षा के लिए रिहा किया गया है। शिबू शोरेन को कोयला मंत्रालय सौपने के साथ साथ उनके एक बेटे के हाथ झारखण्ड सौपने की तैयारी की जा रही है । अजित सिंह को लखनव एयर पोर्ट सोपने का वचन दिया गया है। देवेगौडा साहब बर्तमान नहीं भविष्य सुनिश्चित की गारंटी चाहते है। कही २५ करोड़ तो कही ३० करोड़ करोड़ का खुला ऑफर दिया जा रहा है ।यह अलग बात है कि १९९३ में सरकार बचाने की सूरत में महज ५० लाख की दर से सौदा तय करना पडा था । मनमोहन सिंह सरकार में, रेट महगाई के कारण २५ करोड़ रूपये हो गयी है। इस तरह सरकार -सरकार के इस खेल में हर छोटी बडी पार्टियों के वारे न्यारे हैं। मजेदार बात तो यह है कि इस खेल में कोई रेफरी नहीं है हर कोई खिलाडी है । रेफरी की भूमिका में बने रहने की जीद के कारण लोक सभा अद्यक्ष खुद असमंजस में नजर आते हैं । यानि जरुरत पड़ी तो वे रेफरी कि भूमिका से बाहर निकल कर मैदान में भी उतर सकते हैं । सत्ता के इस खेल में पुराने दुश्मन दोस्त बन गए हैं । और जनम जनम का साथ निभाने का वादा करने वाले लोग