बीजेपी का अंतर्विरोध ,कांग्रेस की सियासत और मुश्किल में आवाम
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में लिखा था । "मेरे प्रभु , मुझे इतनी उचाई कभी मत देना ,गैरों को गले न लगा सकूँ ..... शायद पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को यह एहसास हो गया था कि सत्ता पाने के बाद बीजेपी का न केवल रुतवा बदला है बल्कि उसकी चाल ,चरित्र और चेहरा भी पूरी तरह से बदल गयी है । कुछ अलग दिखने की बात करने वाली पार्टी विचारधारा की दल दल में ऐसी फसती जा रही है कि उसके सामने अगर सबसे बड़ी चुनौती है तो वह विचारधारा को लेकर ही है । हालत यह है कि वाजपेयी गैरों को गले लगाने की बात करते थे ,आज पार्टी में एक दुसरे के खिलाफ तलवार भांजी जा रही है .येदुरप्पा जैसे पुराने लीडरों से पार्टी पल्ला छुडा रही है ।क्या यह ढोंग सिर्फ ईमानदार दिखने के लिए है या फिर पार्टी कोंग्रेस के तीखे प्रहारों से आहात अपने ही लोगों से मुहं चुरा रही है .अगर बीजेपी वाकई कांग्रेस के भ्रष्टाचार संस्कृति से अपने को अलग मानती है फिर कांग्रेस के लाखों करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार का मुकबला करने के बजाय कभी पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को कभी अपने लोकप्रिय मुख्यमंत्री येदुरप्पा को बलि का बकरा क्यों बना रही है ?