ये सब रंगमंच की कठपुतलियाँ है
विश्वगुरु भारत इनदिनों टीवी गुरुओं के प्रवचनों से थोड़ा कंफ्यूज है। भक्त और तथाकथित गैर भक्त संपादको-पत्रकारों ने अपनी तरफ से आंदोलन छेड़ रखा है। देश प्रेम और देश द्रोह के मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में समुद्र मंथन जारी है फर्क सिर्फ इतना है कि इस मंथन का विष पिने के लिए सिर्फ दर्शक मजबूर है.... टीवी पर अपनी ज्ञान धारा बहाने के बाद संपादको का सोशल मीडिया पर बक.... यानी संपादकों के मुख से निकले एक एक शब्द देश के दशा और दिशा तय करने का दम्भ भर रहा है। तमसो मा ज्योतिर्गमय की बात करने वालों का ऐसा अहंकारी भाव पहले शायद ही देखा गया हो। "ये सब रंगमंच की कठपुतलियाँ है जिनकी डोर उपरवाले की उँगलियों में बंधी है। .कब, कौन और कबतक ज्ञानी बना रहेगा ये कोई नहीं बता सकता सिर्फ ऊपर वाला जनता है हा हा हा .".... दिल पर मत लो यार ........