बुदजिलों का कोई मुल्क नहीं होता : एक था वसीम बारी
जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा है -केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा है। हाथ में तिरंगा लिए बांदीपोरा के शेख वसीम बारी जब भी यह नारा लगाता था तो रोंगटे खड़ा कर देता था। देश भक्ति की जज्वा से वसीम समाज सेवा में आया फिर बीजेपी के बांदीपुरा के जिला अध्य्क्ष बन गया और पूरी मेहनत से अंत्योदय के आदर्श लिए गरीबो के सपने को साकार करने लगा लेकिन उनकी यह मकबूलियत इलाके में खटकने लगी , कोरोना महामारी के बीच उनकी तारीफ़ से दहशतगर्द परेशान होने लगे और एक दिन भाई ,बाप सहित उनको आतंकवादियों ने शहीद कर दिया। जम्हूरियत में लोगों की राय अलग हो सकती है, पार्टी और विचार अलग हो सकते हैं लेकिन इस व्यवस्था में मिलकर समाज और देश के विकास के लिए लोग काम करते हैं। लेकिन कश्मीर में ऐसा नहीं होता वहां की जम्हूरियत और सियासत कुछ ही खानदानों तक सिमित है। यहाँ बहुत मुश्किल से कोई नौजवान सियासत में जगह बना पाता है।लेकिन उनसे परेशानी सबसे ज्यादा दहशतगर्द तंजीमो को ही है। आतंकवादियों ने पिछले दिनों वादी के एक मात्र हिन्दू सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी। तेज तर्रार बीजेप