बोलने की आज़ादी या स्वच्छदंता
बोलने की आज़ादी या स्वच्छदंता। मीडिया ने अपने हिसाब से संवैधानिक अधिकार ले लिया है। आज पारम्परिक मीडिया को सोशल मीडिया और न्यू मीडिया से मिली चुनौती ने ख़बरों की क्रेडिबिलिटी पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है। कहते हैं कि "आधा सच" ,झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है। फिर आधा सच के बिना पर प्रसारित और प्रचारित हो रही खबरें ,समाज में ज़हर नहीं घोल रही है ? देश की दिशा और दशा बताने वाले स्वधन्य पत्रकार और मीडिया हाउस सोशल मीडिया से ब्रेकिंग न्यूज़ उधार ले रहे हैं और उसका विश्लेषण भी कर रहे है। जबकि ऐसे नामी गिरामी चैनल का घटना पर कोई रिपोर्टर नहीं है। कॉस्ट कटिंग के दौर में ख़बरों की विश्वसनीयता एजेंसी और स्टिंगर के भरोसे है लेकिन संविधान और देश की आज़ादी अक्षुण रखने का दावा हम कर रहे हैं। आत्ममंथन करने के बजाय चैनल्स टी आर पी के नाम पर सिस्टम में गलतियां ढूंढ रहे हैं। लेकिन मीडिया की गलती पर कौन सवाल उठाएगा ? इस बात को लेकर कोई बहस नहीं है। मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट और एथिक्स को लेकर आज कोई गंभीर चर्चा मीडिया में नहीं है। मीडिया ने पेड न्यूज़ के रूप में अपने उच्च आदर्शो किस तरह