श्यामा प्रसाद मुखर्जी के दरबाजे पर प्रणब दा की दस्तक
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में देश का नजरिया कैसा हो यह तय करने का अधिकार अबतक कांग्रेस ने संभाल रखी थी। वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श को मानने वाले इस देश में कांग्रेस की सेकुलरिज्म कश्मीर में क्यों फेल हुई तो कारण पाकिस्तान और आई एस आई को बताया गया । इसे सत्ता तक पहुँचने का फार्मूला मानकर वामपंथियों ने भी नजरिये के खेल में खूब हाथ धोया और भारत को देश के बदले सराय बना डाला । दो बड़े दिग्गज विद्वान् जब इस राष्ट्रवाद और लोकतंत्र पर चर्चा करने एक मंच पर खड़े हुए तो सबसे ज्यादा निराशा नज़रिये वालो में देखा गया। जिस देश के हज़ारो वर्ष की परम्परा में संवाद उसकी आत्मा रही है ,विचारो को लेकर शाश्त्रार्थ सामजिक अनुशासन रहा है। उस देश को सराय मानने वाले लोग अपनी अपनी मर्यादा भूलकर पूर्व राष्ट्रपति और मोहन भागवत जी के खिलाफ अनर्गल बयानवाजी कर रहे हो तो माना जायेगा कि वो संविधान संशोधन करके देश को सेक्युलर बना सकते है लेकिन देश के लोकतंत्र और धर्मनिर्पेक्षता में उन्हें कोई आस्था नहीं है। वह कौन सा सेकुलरिज्म और लोकतंत्र था जिसके कारण संघ के एक स्वयंसेवक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक देश एक विधान