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जून 3, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

श्यामा प्रसाद मुखर्जी के दरबाजे पर प्रणब दा की दस्तक

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में देश का नजरिया कैसा हो यह तय करने का अधिकार अबतक कांग्रेस ने संभाल रखी थी। वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श को मानने वाले इस देश में कांग्रेस की सेकुलरिज्म कश्मीर में क्यों फेल हुई तो कारण पाकिस्तान और आई एस आई को बताया गया । इसे सत्ता तक पहुँचने का फार्मूला मानकर वामपंथियों ने भी नजरिये के खेल में खूब हाथ धोया और भारत को देश के बदले सराय बना डाला । दो बड़े दिग्गज विद्वान् जब इस राष्ट्रवाद और लोकतंत्र पर चर्चा करने एक मंच पर खड़े हुए तो सबसे ज्यादा निराशा नज़रिये वालो में देखा गया। जिस देश के हज़ारो वर्ष की परम्परा में संवाद उसकी आत्मा रही है ,विचारो को लेकर शाश्त्रार्थ सामजिक अनुशासन रहा है। उस देश को सराय मानने वाले लोग अपनी अपनी मर्यादा भूलकर पूर्व राष्ट्रपति और मोहन भागवत जी के खिलाफ अनर्गल बयानवाजी कर रहे हो तो माना जायेगा कि वो संविधान संशोधन करके देश को सेक्युलर बना सकते है लेकिन देश के लोकतंत्र और धर्मनिर्पेक्षता में उन्हें कोई आस्था नहीं है। वह कौन सा सेकुलरिज्म और लोकतंत्र था जिसके कारण संघ के एक स्वयंसेवक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक देश एक विधान

गरीब का मसला जाति और मजहब से नहीं है...समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई...

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गोरख पांडेय ने क्या खूब लिखा था "समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई...हाथी से आई, घोड़ा से आई......लाठी से आई, गोली से आई..लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद.. अदम गोंडवी ने इस समाजवाद कुछ इस तरह समझने कि कोशिश की .. "काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में ,उतरा है रामराज विधायक निवास में,पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में.आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह,जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में... गरीबी और गरीब से सियासत शुरू होती है और वही ख़तम हो जाती है लेकिन आम लोगों की स्थिति नहीं बदलती। गरीब एक बार फिर अगले चुनाव का मुद्दा हो जाता है और समाजवाद चालू आहे .... उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार भी कमोवेश उसी समाजवाद और उनकी डीएनए वाले नेताओ के रंग में रंगी लगती है। कांग्रेस की तरह लोहिया जी के चेलों ने भी समाजवाद को पूंजीवाद के चासनी में डालकर एक अलग फार्मूला बना डाला और समाजवाद सिर्फ सत्ता हथियाने का जुगाड़ फार्मूला बन गया। पहले लोग कहते थे समजवादी और मेढक को तौलना बराबर का काम है लेकिन आज समाजवाद पूंजीवाद से सीख लेकर कांग्रेस की वंशवाद क