कश्मीर: पत्थर युग मे लौटने की कबायद तेज
घर से ऑफिस निकले शफीक अहमद शेख को नहीं पता था कि अगले चौक पर कुछ पत्थर वाले उनका इंतजार कर रहे है .जैसे ही उनकी मिनी बस मगरमाल बाग पहुची एक पत्थर सीधे बस की ओर उछाला गया .ओर सीधे चोट शेख के सर पर लगी .कुछ ही पल में शेख सदा सदा के लिए खामोश हो गए . बारामुला के अब्दुल अजीज अपने ११ दिन के बच्चा इरफ़ान को हस्पताल ले जा रहे थे लेकिन उन्हें हस्पताल नहीं जाने दिया गया एक उत्साही नौजवान ने एक पत्थर उछाला और पल भर में वह दिन का बच्चा दम तोड़ गया .यानी पत्थर के खेल के शौकीन कश्मीर का नौजवान पत्थरों से लोगों की जान ले रहे है लेकिन सियासत ऐसी कि हुकूमत पत्थर वाजों को रोक नहीं पा रही है और सियासी नेता इसे नौजवानों की हतासा मान रही है .यानि पत्थर युग में पहुच चूका कश्मीर एक नयी संस्कृति को अपना लिया है . हर जुम्मे के दिन पत्थर वाजी का यह आम नज़ारा होता है .श्रीनगर के जामा मस्जिद के इलाके ,पुराने बारामुला और सोपोर मे अचानक हर शुक्रवार को चौराहे पर एक महफ़िल सजाई जाती है जिसमे उत्साही नौजवानों की टोली हाथ मे पत्थर लिए पुलिस कर्मी को आगे बढ़ने के उकसाती है .इनका नारा होता है जीवे जीवे पाकिस्तान ,हम क्या