धमाके में कौन मरा ?
जयपुर धमाके की गूंज आज भी सुनाई देती है । मैंने ग़लत कहा ये गूंज शायद आपको नही सुनाई देती होगी क्योकि इन धमाकों मे शायद आपका कोई नही खोया होगा । हर एक धमाके के बाद हम भूल जाते हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं हो । जयपुर के अस्पताल के बाहर डॉक्टर और उनके मेडिकल टीम एक एक यूनिट खून देने की मिन्नतें कर रहे थे । बार यह बताया जा रहा था की आपके एक यूनिट खून से किसी की जान बचायी जा सकती है । कुछ लोग इसलिए नही निकल रहे थे क्योंकि ओ पूरी तरह से आश्वस्त थे इन धमाको मे उनका कोई हताहत नही हुआ है । कुछ लोग दर्जनों टीवी चैनल के लाइव शो का इस निराकार भाव से देख रहे थे मानो आई पी एल के मैच देख रहे हो । यानि हमारा सरोकार का दायरा इतना सिमट चुका है कि हम हर हादसे मे पहले अपने परिवार को खोजते है सब कुछ ठीक ठाक होने पर निश्चिंत हो जाते है कि दुनिया जाई भाड़ में हमे क्या पड़ी । धमाके के बाद हालत jase ही सामान्य होती है मीडिया के लिए यह भी एक बड़ी ख़बर बन जाती है कि लोगों ने आतंक को हरा दिया है , आतंकवादियों के मनसूबे को पस्त कर दिया है । लोगों का हजूम पहले कि तरह बाजारों में दाखिल होता मानो कल कुछ हुआ ही न हो ।