नोटबंदी : सबका कारण व्यक्तिगत है ?
नोटबंदी का आर्थिक लाभ / हानि १० दिनों के बाद दिखने को मिल सकते हैं। लेकिन इसका सियासी फायदा किसको मिला है और मिलेगा यह कहना अभी मुश्किल हैं। लेकिन क्या प्रधानमंत्री मोदी ने यह फैसला सियासी लाभ के लिये लिया था ? तो कहा जा सकता है बिलकुल नहीं। करप्शन के खिलाफ, कालाधन के खिलाफ अभियान अगर चुनावी मुद्दा हो सकता था तो पिछले 70 सालों में यह मुद्दा कई बार आजमाया गया होता। अगर इंदिरा जी ने चुनावी सियासत में नोटबंदी को अव्यवहारिक माना था। तो माना जा सकता है कि वे इस देश के जनमानस के चरित्र को बेहतर समझती थी। अपनी काबिलयत और क्षमता को साबित करने के लिए इंदिरा जी 1971 में पाकिस्तान के साथ जंग जरूर लड़ ली लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने कोई अभियान नहीं चलाया। रही बात मोदी जी की तो जिनका चिंतन और कार्य फकीरी से शुरू होकर निष्काम कर्म पर ख़त्म होता है उसे चुनाव की चिंता क्या बिगाड सकती है। पिछले 70 वर्षो में देश में ऐसी कोई घटना नहीं थी जिसमे मुल्क के जनमानस को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया हो। नोटबंदी/नोटबदली ने समाज के हर तबके को प्रभावित किया है क्या ये बात मोदी जी नहीं जानते