केजरीवाल और शाहीनबाग : भारत माता की जय के साथ कांग्रेस का विकल्प
पिछले 70 वर्षों में भारत की राजनीति और लोकतंत्र कितना मजबूत हुआ है इसे दिल्ली के चुनाव में शाहीनबाग और हनुमान चालीसा जैसे चुनावी फॉर्मूले से समझा जा सकता है। विविधता से भरे इस देश में चुनावी मुद्दे कैसे बदलते हैं इसका बेहतर उदाहरण भी दिल्ली है। अगर आम आदमी पार्टी की जीत पर भारत माता की जय का जयकारा होता है फिर शाहीनबाग क्या है ? फिर आर एस एस के भैया जी जोशी का कहना सही है कि बीजेपी का विरोध हिन्दू का विरोध नहीं है और न ही भाजपा का मतलब हिन्दू होता है। सच कहे तो भारत का लोकतंत्र वोट साधने के फॉर्मूले से शुरू होता है और चुनाव जीतने के लक्ष्य पूरा होने के साथ ख़तम हो जाता है। लगातार पांच साल तक दिल्ली के संगठन को सक्रीय, किये बिना अगर बीजेपी 1 महीने के धुआँधार चुनाव प्रचार से दिल्ली फतह का फार्मूला लाती है तो यह भी एक सीख है की लोग पार्टी को लेकर राय एक महीने में नहीं बनाते हैं। 6 महीने पहले जिस दिल्ली ने नरेंद्र मोदी की अपील पर प्रचंड बहुमत से सभी 7 सीट जताई थी वही दिल्ली इस बार उनकी नहीं सुनी। यानी दिल्ली ने अपने स्थानीय मुद्दे ,स्थानीय नेता की तरजीह दी। यानी सॉफ्ट हिंदुत्व से लेकर