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अप्रैल 9, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कश्मीर में जम्हूरियत जिंदाबाद !

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जम्हूरियत जिंदाबाद ! फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ज़िंदाबाद के नारों के बीच फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने  श्रीनगर का एम पी चुनाव जीत लिया है। लेकिन 9 अप्रैल के चुनाव के दो चित्र देश के बुद्धिजीवियों के बीच बहस का मुद्दा बना हुआ है। ये जम्हूरियत जिंदाबाद है  कि बाप -बेटा दोनों अब्दुल्लाह पथ्थरवाजो का गुणगान करते रहे और मुल्क को कोसते रहे. ..   एकबार फिर वे देश के कानून/नीति  निर्माता बन गए हैं। लेकिन मीडिया और बुद्दिजीवियो के बीच दोनों  चित्रों पर अलग अलग राय दी जा रही है और केंद्र की सरकार को सामने रखकर अनर्गल शब्द गढ़े जा रहे है.  उसकी हकीकत को जानने की तनिक भी कोशिश नहीं  हुई नेता उपदेश दे रहे है ,बुद्धिजीवी सरकार को गरिया रहे रहे हैं क्योंकि यहाँ जम्हुर्रियत ज़िंदाबाद है ! दरअसल सेना की जीप पर एक पथ्थरबाज  को बाँध कर ले जाते हुए जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है वह भी 9 अप्रैल का ही है ठीक उसी दिन  जिस दिन  सी आर पी एफ के जवानो पर पथ्थरवाजो के बेशर्म करतूत भी सामने आया था। बड़गाम के एक बूथ पर महज 9 आई टी बी पी के जवान और स्थानीय पुलिस मतदान प्रक्रिया बनाये रखने की जद्दोजेहद कर रहे थे ,लेकिन भारी

क्या कश्मीर भारत के हाथ से फिसल रहा है ?

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क्या कश्मीर के नौजवाब  स्टोन ऐज में लौट गए हैं  ? क्या अलगाववादी ग्रुप और आतंकवादी  ही इन पथरवाज नौजवानो के आदर्श  हैं ? क्या पाकिस्तान ही इन गुस्साए नौजवानो का लक्ष्य है ? शायद नहीं !  फिर इनका मकसद क्या है ?श्रीनगर में कुछ सन्यासी सी आर पी एफ  के जवानों पर पथ्थरवाजो ने जिस कदर अशोभनीय हरकत की है उससे पूरा देश गुस्से में है। कमाल हसन से लेकर फरहान अख्तर तक गौतम गंभीर से लेकर वीरेंदर सेहबाग तक हर कोई इससे आहत है। लेकिन रियासत के दो पूर्व मुख्यमंत्री इन पथ्थरवाजो के साथ खड़े दिख रहे हैं। यानी एक तरफ जज्वात है तो दूसरी तरफ सियासत। लेकिन इस इस दौर में कश्मीर में सिर्फ जज्वात उफान पर है सियासत चाहे मुख्यधारा की पार्टी की हो या हुर्रियत की, बौनी साबित हुई है।  क्या इन पथरवाजो के साथ ,एन सी और पी डी पी के लोग नहीं हैं ? जज्बाती भाषण देश के  गृह मंत्री भी दे  रहे हैं क्योकि कानून व्यवस्था का मामला राज्य का है ,उसी जज्वात में कश्मीर का हर नेता अपने अपने कॉन्स्टिचुएंसी को सहला रहे है ,उसे भरमा रहे हैं। तो क्या कश्मीर भारत  हाथ से फिसल रहा है? मैं कहता हूँ ,यह दोगली बात वही कर रहे है ज

एक बार फिर लौट आओ कबीर

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अब बिजनौर के जोगीरामपुरा के लोगों ने गांव छोड़ने की धमकी दी है ,वजह सुनना चाहेंगे ? स्थानीय मंदिर पर लाउडस्पीकर बजाना सख्त मना है (जिला प्रशाशन के आदेशानुसार )।क्योंकि  बहुसंख्यक मुस्लिम गाँव में हिन्दू मंदिर पर लाउडस्पीकर बजने पर कुछ लोग खून खराबे पर उतर आते हैं  लेकिन ,स्थानीय मस्जिदों के ऊँचे गुम्बद पर बंधे लाउडस्पीकरों से प्रशासन को कोई परेशानी नहीं है। यह उस कबीर के देश में हो रहा जिसने कठ्ठमुल्लाओं को चुनौती देते हुए कहा करते थे "कंकर पत्थर जोड़ी के मस्जिद लई  बनाई ,तो चढ़ी मुल्ला बांग दे ,क्या बहरे हुए खुदाय। कबीर हिन्दुओ को भी कहते थे पत्थर पूजे हरी मिले तो मैं पुजू पहाड़ ....भक्ति और आस्था ,जाति  और मजहब में बटे समाज को आईना दिखाकर कबीर ने  भारतीय संस्कृति में भक्ति और मोक्ष के लिए सबको आसान रास्ता बताया। आजतक किसीने कबीर की जात और मजहब नहीं पूछा। आज कल  कुछ विद्वान पत्रकार और लेखक कहते हैं उन्हें बहुसंख्यकवाद पसंद नहीं हैं। मैं कहता हूँ  उन्हें सच बोलने का साहस नहीं है ,उनसे अच्छा  भाँट है जो चारणगीत को अपना रोजगार मानता है लेकिन विदवान होने का दम्भ नहीं भरता ।  धा

एक बार फिर लौट आओ कबीर

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अब बिजनौर के जोगीरामपुरा के लोगों ने गांव छोड़ने की धमकी दी है ,वजह सुनना चाहेंगे ? स्थानीय मंदिर पर लाउडस्पीकर बजाना सख्त मना है (जिला प्रशाशन के आदेशानुसार )।क्योंकि  बहुसंख्यक मुस्लिम गाँव में हिन्दू मंदिर पर लाउडस्पीकर बजने पर कुछ लोग खून खराबे पर उतर आते हैं  लेकिन ,स्थानीय मस्जिदों के ऊँचे गुम्बद पर बंधे लाउडस्पीकरों से प्रशासन को कोई परेशानी नहीं है। यह उस कबीर के देश में हो रहा जिसने कठ्ठमुल्लाओं को चुनौती देते हुए कहा करते थे "कंकर पत्थर जोड़ी के मस्जिद लई  बनाई ,तो चढ़ी मुल्ला बांग दे ,क्या बहरे हुए खुदाय। कबीर हिन्दुओ को भी कहते थे पत्थर पूजे हरी मिले तो मैं पुजू पहाड़ ....भक्ति और आस्था ,जाति  और मजहब में बटे समाज को आईना दिखाकर कबीर ने  भारतीय संस्कृति में भक्ति और मोक्ष के लिए सबको आसान रास्ता बताया। आजतक किसीने कबीर की जात और मजहब नहीं पूछा। आज कल  कुछ विद्वान पत्रकार और लेखक कहते हैं उन्हें बहुसंख्यकवाद पसंद नहीं हैं। मैं कहता हूँ  उन्हें सच बोलने का साहस नहीं है ,उनसे अच्छा  भाँट है जो चारणगीत को अपना रोजगार मानता है लेकिन विदवान होने का दम्भ नहीं भरता ।  धा