बाढ़ :उपेक्षित बिहार हर बार सियासत का ही शिकार होता है
“ बाढ़? ” “बकरा नदी का पानी पूरब-पश्चिम दोनों कछार पर ‘छहछह’ कर रहा है। मेरे खेत की मड़ैया के पास कमर-भर पानी है।” “दुहाय कोसका महारानी!” इस इलाके के लोग हर छोटी-बड़ी नदी को कोसी ही कहते हैं। कोसी बराज बनने के बाद भी बाढ़?... कोसका मैया से भला आदमी जीत सकेंगे? ..लो और बांधों कोसी को! “अब क्या होगा?” कल मुख्यमंत्रीजी ‘आसमानी-दौरा’ करेंगे। ...केंद्रीय खाद्यमंत्री भी उड़कर आ रहे हैं। नदी-घाटी योजना के मंत्रीजी ने बयान दिया है। और रिलीफ भेजा जा रहा है। चावल-आटा-तेल-कपड़ा-किरासन-तेल- माचिस-साबूदाना-चीनी से भरे दस सरकारी ट्रक रवाना हो चुके हैं। ...कल सारी रात विजिलेंस कमिटी की बैठक चलती रही। फणीश्वरनाथ रेणु के 40 साल पुराने संस्मरण को पढ़कर लगा ,कुछ भी तो नहीं बदला है। .बिहार, बाढ़ और भ्रष्टाचार की कहानी में। गंगा ,सोन ,पुनपुन ,फल्गु ,कर्मनाशा ,दुर्गावती ,कोसी ,गंडक ,घाघरा ,कमला ,भुतही बलान ,महानंदा इतनी नदियाँ जो जीवन धारा बन सकती थी लेकिन साल सिर्फ तबाही लाती है और हमारी सरकार फिर अगलीबार का इन्तजार करती है। बिहार के 18 जिलों में जलप्रलय है 2 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित है। 15