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मार्च 12, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्तर प्रदेश एक राजनितिक प्रयोगशाला

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दीनदयाल उपाध्य जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में मनाये जाने वाला गरीब कल्याण वर्ष और नोटबंदी का क्या कोई ताल्लुक है  ? जरा सोचिये इंदिरा जी का बैंकों का राष्ट्रीकरण से  गरीबो का कोई सरोकार था क्या ? "गरीबी हटाओ" के इंदिरा जी का नारा क्या देश से गरीबी हटा पाया तो क्या पी एम मोदी का जनधन एकाउंट योजना गरीबों के एकाउंट में पैसा डाल पाया क्या ? शायद नहीं !लेकिन गरीबों का नाम लेकर इंदिरा जी और उनका परिवार वर्षों तक इस देश पर  शासन किया तो क्या पी एम मोदी भी चुनाव जीतने के लिए "गरीबी" का जबरदस्त मार्केटिंग कर रहे हैं ? भाई, आज भी गरीब और किसान की चर्चा तो सबसे ज्यादा राहुल बाबा करते हैं क्योंकि यह अबतक कांग्रेस का कॉपीराइट रहा ,फिर लोगों को उनकी बात पर यकीन क्यों नहीं हो रहा ?  क्यों यू पी में समाजवाद और दलितवाद ,जातिवाद ,सम्प्रदायवाद का प्रयोग धरासायी हो गया है ? शायद इसलिए अब गरीब सहानुभूति नहीं चाहते वो सियासी लीडरों का एहसान नहीं चाहते। अगर एक्सप्रेस वे को अखिलेश अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं तो हर गरीब को पता है कि उनका पूरा खानदान आज रिअलिटी ...

"सोच बदलेगा तो देश बदलेगा "

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उत्तर प्रदेश में जीत - हार की समीक्षा अभी होना बाकी है ,लेकिन ई वी एम मशीन पर हार का ठीकरा फोड़कर मायावती ने ठीक वैसी ही बात की है जैसी बात लाल कृष्ण आडवाणी ने 2004 में की थी। गोमती नदी के किनारे अपनी भव्य मूर्ति लगाकर मायावती ने लखनऊ में अपने को स्थापित जरूर कर लिया लेकिन इन वर्षों में सियासत में आये बदलाव को समझने में धोखा खा गयी। ऐसा ही धोखा बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार अडवाणी जी ने खाया था। सोशल इंजिनयरिंग का फार्मूला अब जीत का सूत्र नहीं है। न ही उग्र राष्ट्रवाद से चुनाव  जीता  जा सकता है। काम बोलता है इसके लिए प्रचार की जरूरत नहीं है ,जैसे शाइनिंग इंडिया की चमक का प्रचार 2004 में लोगों को प्रभावित नहीं कर सका था । लोगों के दिल में उतरने के लिए आम लोगों से संवाद जरूरी है। आमलोगों की समस्या को समझना जरूरी है। राष्ट्रीय मुद्दे की चर्चा के बजाय पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश में स्थानीय मुद्दे को अपनी जन  सभा में उठाया ,पार्टी ने टिकट बटवारे में हर वर्ग का ध्यान रखा  .सबसे बड़ी बात यह थी कि हर आम और खास में मोदी यह यकीन दिलाने में कामयाब हुए हैं कि स...