अरुण जेटली : गीता के कर्मयोगी जिसका जो बन पड़े करते रहो
एक साल ही तो हुए हैं ,एम्स से एक मेडिकल बुलेटिन रिलीज़ हुई थी। अटल जी नहीं रहे। 15 दिन पहले ऐसी ही बुलेटिन आयी सुषमा जी नहीं रही। इसी अगस्त महीने में एम्स के एक और बुलेटिन देखकर स्तब्ध हूँ। निःशब्द हूँ कि अरुण जेटली का देहांत हो गया। प्रमोद महाजन ,अनंत कुमार ,सुषमा जी फिर अरुण जेटली का यूँ चले जाना बीजेपी की क्षति से ज्यादा देश के लिए उस विचार का अंत हो जाना है जिसने राजनीति में लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहस की ताकत को आम लोगों के बीच रखा। अटल जी की यह दूसरी पीढ़ी थी ,जो संसद और संसद के बाहर अपनी बुद्धिमता ,बाकपटुता और तर्कों से विचारधारा से अलग अपनी धारा बनांते हुए नज़र आते थे ।जिसमे घोर विरोधी भी हिचकोले खाने लगते थे।अरुण जी एक विचार थे ,एक संस्था थे, इससे ऊपर वो अपने युग के आखिरी कड़ी थे। जिसमे आइडियोलॉजी संवाद बनाने ,संपर्क बढ़ाने में कभी आड़े नहीं आयी। अपने पार्टी के लोग कभी कभी यह सवाल भी उठाते थे ,किसके हैं अरुण जेटली ? गीता के कर्मयोगी की तरह समभाव का जीवन दर्शन ,जिसका जो बन पड़े करते रहो। लम्बे अंतराल के बाद बजट सेशन में इस बार जाने का मौका मिला।