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प्रधानमंत्री नहीं पटवारी बदलिए राहुल जी !

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राजधानी दिल्ली में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का किसान मुक्ति मार्च कई मामले में ऐतिहासिक रहा। सवालों की  बौछारों के बीच समाधान का सूत्र न तो मंचासीन राजनेताओ  ( एम पी निवास  के किसान नेता ) की ओर से आया न ही मंच सजाने  के लिए दूर दराज गाँव से आये किसान/मजदूरों से कर्जे के अलावा कोई समाधान की मांग उठी।  लेकिन मंच से राहुल गाँधी का सन्देश जरूर आया समाधान के लिए पीएम बदलना जरूरी है तो अरविन्द केजरीवाल जी ने अपना ब्रह्म वाक्य दुहराया " ये मोदी हानिकारक है "  समाधान सुझाने  वाले की दृष्टि मंच और भीड़ तक सिमित थी और किसानो की दृष्टि  अपने हजार /लाख कर्जे पर टीकी थी कि कब कर्ज माफ़ी का एलान हो जाय। लेकिन समस्या पीछ छूट गयी कि इस कर्जे के लिए जिम्मेदार कौन है ? क्या ग्रामीण अंचलों में भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे  पटवारी/सिस्टम  इतने ताकतवर हैं  कि किसानो के फायदे की योजनाए डकार रहे हैं। और  सरकारे मूक दर्शक बनी हुई है ?  प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ...

"मन की बात " यानी जन संवाद ,जनतंत्र का संवाद....

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"मन की बात " यानी जन संवाद ,जनतंत्र का संवाद ,लोकपरम्परा का संवाद यानी जनता  और एग्जीक्यूटिव का   टू वे कम्युनिकेशन।  क्या  जनतंत्र का  यह पहला प्रयोग है ? शायद नहीं ,प्राचीन  भारत के गणराज्यो में शासकों  से जनता का ऐसी   ही संवाद की परंपरा रही होगी। आधुनिक लोकतंत्र में पांच साल बाद जनता सिर्फ तय करती है कि सत्ता पार्टी को  जितना है या हराना है। गवर्नेंस में उसकी कोई भूमिका नहीं होती। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने   मन की बात कार्यक्रम के   50 वे एपिसोड में जोर देकर कहा  कि इस कार्यक्रम में सिर्फ आवाज़ उनकी है लेकिन भावना / विचार   देश के अवाम का है,आईडिया देश के युवाओं का है । आज़ाद भारत में   किसी प्रधानमंत्री की  संभवतः यह सम्भवतः पहली कोशिश है जिसमे संवाद को समावेशी बनाकर आम और खास के फर्क को कम किया गया है और देश के हर घर से संवाद स्थापित करने में कामयाबी मिली है। देश में ऐसे दर्जनों लोकप्रय अभियान चल रहे हैं इन  सरकार के अभियानों  के आई...