जब वी मेट !


जब वी मेट ! कुछ ऐसा ही इन दिनों सियासत में भी हो रहा। जनता की नज़रो में एक दूसरे से पूछते हैं" हम आपके हैं कौन " और नज़र ओझल होते ही तेरा साथ है तो हमें क्या कमी है ... पिछले 25 वर्षों में केंद्र और राज्यों में इसी तरह के नैतिक /अनैतिक गठजोड़ तक़रीबन 20 बार बने है और हर बार जनता जनार्दन बूढ़े  संरक्षक की तरह अपने को असहाय ही पाया है। जब कुछ सियासी दल अकेला विधायक मधु कोड़ा पर सब कुछ लुटाता और बाद में  उसे भरपूर लूटता है तो कभी किंग मेकर बनने वाले कुमारस्वामी किंग बन जाते  है । मायावती के लिए कभी बीजेपी सबसे ज्यादा  गुणवान गठबंधन होता है तो कभी ममता दी केंद्र में  बीजेपी के लिए आदर्श हो जाती है। तो कभी वामपंथी और दक्षिण पंथी का  गठबंधन केंद्र में कांग्रेस का अलटरनेट मंच बनता है तो कभी बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस और वामपंथी सेक्युलर गांठ जोड़  लेती है। ऐसे में कुछ सम्बन्ध जो पब्लिक में बनते है उसे जायज करार दिया जाता है लेकिन कुछ सम्बन्ध जब वी मेट वाला बनता है तो माननीय न्यायलय के सामने भी  मुश्किल होता है कि इसे अनैतिक कैसे कहा जाय क्योंकि संविधान ने दूल्हे दुल्हन के साथ सिर्फ बाराती की संख्या की व्याख्या की है। नैतिक और अनैतिक के मामले में संविधान चुप है। 
लेकिन कर्नाटक में सियासी ड्रामे के बीच पी एम मोदी पास या फेल ! एक जोरदार बहस चल पड़ी है। पिछले पंद्रह दिनों से मीडिया / सोशल मीडिया  इस सवाल का हल ढूंढने में  एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था । क्योंकि राज्यों में चुनावी लहर मोदी से शुरू होती है और मोदी से ख़तम।  लेकिन  सवाल यह  है कि क्या ऐसे ही सवाल देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए भी कभी  पूछा गया था ... अगर नहीं तो सिर्फ मोदी के लिए ही क्यों ? लेकिन सवाल का जवाब यह कि कर्नाटक  में 40 सीट को 104 बनाकर पी ऍम मोदी अब्बल दर्जे से  पास हुए हैं जबकि उनकी पार्टी बीजेपी फेल हुई है। इसके पीछे मजबूत तर्क यह है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री येदुरप्पा अगर अपने लिए आठ विधायक नहीं जोड़ पाए तो माना जायेगा कि उनकी अपील न तो जनता के बीच थी न ही एम् एल ए के बीच। 



वर्षो बाद पहली बार इस देश ने उम्मीदों के साथ मोदी को एक राष्ट्रीय नेता एक कुशल  प्रधानमंत्री के रूप में चुना था। कह सकते है 1984 के बाद मोदी अवाम के चुने हुए प्रधानमंत्री है लेकिन   क्षेत्रीय क्षत्रप उन्हें फेल  करार देने में पूरी ताकत लगा रहे हैं।   वजह वे मोदी को अपने और अपने परिवार के अस्तित्व का सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं। लेकिन इन चार वर्षों में सबसे  बड़ा सवाल मोदी सरकार के लिए यह है कि  जिस परिवर्तन और सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर उन्होंने बहुमत की सत्ता पायी थी क्या टीम मोदी कुशल नेतृत्व दे रही है ....क्या  परिवर्तन दिख रहा है ? अगर परिवर्तन हुआ  है तो पब्लिक में चर्चा क्यों नहीं है ?

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