सामाजिक न्याय के नए युवराज और ग्राम स्वराज

बाबा नागार्जुन का  जन्मदिन 30 जून किसके लिए महत्वपूर्ण है किसके लिए नहीं यह कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी गाँव ,गरीब ,मजदूर की हालत कितनी  बदली है यह आज भी एक बड़ा सवाल है। 50 साल पहले बाबा जिस सिस्टम की बात अपनी कविता में कर रहे थे  वह कितना बदल पाया है :
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे!
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का! 

मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को ...
तो क्या  गाँव सचमुच आज भी  मेहनतकश किसान /मजदूरों को  दो जून की रोटी जुटाने की जुगत नहीं जोड़ पाया। मौजूदा सरकार की ग्राम स्वराज अभियान ने कमोवेश इसी सच से पर्दा उठाने का काम किया है।

 
जिला रोहतास का प्रखंड नौखा ,दिल्ली से आये नोडल ओफिसर अत्यानन्द  गांव वालो से पूछते है कितने लोगों को अबतक घर नहीं मिला है ?सबने हाथ उठाया ,कितने घरों में शौचालय है ?एक भी घर में  नहीं . बिजली क्यों नहीं आयी . स्थानीय प्रशासन इसके लिए नक्सल को जिम्मेदार ठहराते है। जबकि पिछले 10 वर्षों में इन इलाकों में एक भी नक्सली बारदात नहीं हुई है लेकिन फाईलो में किसी बाबू ने इस इलाके को नक्सली करार दिया तो इसके बाद शिक्षक को स्कूल जाने से आज़ादी मिल गयी ,स्वस्थ्य सेवा के लोग  ग्रामीण इलाके में जाना रिस्क बताने लगे। 12 बजे ब्लॉक खुला तो तीन बजते बजते कर्मचारी/अफसर गायब। नक्सली इलाके में रिस्क है भाई। भाई! इसी रिस्क ने समाज कल्याण और विकास के फण्ड को लूट का बाज़ार बना दिया। 

 आज देश के तक़रीबन 625 जिलों में से 515 जिलों में  ग्राम स्वराज अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में केंद्र सरकार के गरीब कल्याणकारी योजना : उज्ज्वला योजना, मिशन इन्द्रधनुष, प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना, उजाला, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और स्वच्छ भारत अभियान का शत प्रतिशत आच्छादन किया जा रहा है। अबतक 21000 गाँव में सात प्रमुख योजनाए  शत - प्रतिशत लागू कर दिए गए हैं। 
गरीबी और गरीबी को लेकर देश में खूब नारे बने कई चुनाव जीते गए लेकिन गरीबो तक पहुंचने का सार्थक प्रयास कभी नहीं हुए। दिल्ली से योजना बनी लेकिन गांव सड़को पर तमाम योजनाए धुल फांकती नज़र आयी। 
किसी ने इसे चुनाव में धनवल और बाहुवल के बढ़ते असर को माना तो किसी ने पंचायती राज निज़ाम को ठीक से लागू न होने का रोना रोया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस सोशल जस्टिस के नाम पर पिछले 30 वर्षों से सरकारे बन रही है सामाजिक न्याय के नए नए युवराज सामने आ रहे है इसके बावजूद बिहार ,झारखण्ड ,उत्तर प्रदेश ,ओडिशा ,पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा पिछड़े जिले क्यों है ? पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने देश के ऐसे 115 अति पिछड़े जिलों को एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट का नाम दिया ,जहाँ लोगों की आकांक्षा को पूरा करना सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। पी एम् मोदी ने कहा "जब ऐसे जिले के सभी  बच्चे स्कूल जाने लगे और हर घर में बिजली पहुंच जाए तो माना जायेगा कि सामाजिक न्याय ने अभी अंगड़ाई ली है "।

अबतक सोशल जस्टिस का सरोकार कुछ परिवारों की सियासत से रहा है। आती उत्साह में कुछ बुद्धजीबियों ने इसे पिछड़े वर्गो की राजनितिक चेतना से जोड़कर इसका दाम भी वसूला लेकिन सच यह है कि आम आदमी की जिंदगी में इससे कोई रौशनी नहीं मिली। और वह सत्ता के इस जातिवादी प्रयोग में ठगा ही महसूसक कर रहा है। 
सामाजिक न्याय के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करने वाले 
नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि वे  वामपंथी थे लेकिन इज्म और पंथ उन्होंने किसी मैनिफेस्टो और मार्क्स -लेनिन की  किताबो से नहीं सीखा उन्होंने समाज की जो हालात देखी वैसी रचना की और अव्यवस्था पर शब्दों  से  प्रहार किया 
 
“मुन्ना मुझको पटना दिल्ली मत जाने दो
भूमिपुत्र के संग्रामी तेवर लिखने दो। 
जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊँ।
जनकवि हूँ मैं साफ़ कहूँगा क्यों हकलाऊं।
स्वाद मिला असली सत्ता का क्यों न मचाएं शोर
पूँछ उठाकर नाच रहे हैं लोकसभाई मोर। 
 सादर नमन !

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