चुनावी एजेंडे में गुम हो रही है नए भारत की कहानी
आज के दिन देश के 4 लाख गाँव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। अबतक देश के 417 जिले और 19 राज्यों ने भी खुले में शौच से मुक्ति का एलान कर दिया है। भारत के लगभग 90 फीसद भूभाग पर स्वच्छ भारत अभियान ने किला फतह कर लिया है। लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि इसमें सरकार के 12000 रूपये से ज्यादा सहयोग 95 वर्ष की कुंवर बाई की है जिसकी प्रेरणा से उनका पूरा गाँव ओ डी एफ हो गया। बिहार के सीतामढ़ी के गाँव में 12 -15 साल क़े किशोरों की टोली ने सीटी बजाकर लोगो को खुले में शौच जाने की गन्दी आदत को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। वही डीएम रंजीत कुमार जिले में स्वच्छाग्रही बनकर हर घर में शौचालय निर्माण को संभव बनाया। सुबह सवेरे सड़क के किनारे गश्त लगाकर बैठे डीएम को लोगों ने भले ही न पहचाना हो लेकिन बिहार के इस पिछड़े जिले में लोगों ने उनकी बात सुनी और सीतामढ़ी बिहार का पहला ओ डी एफ जिला बन गया । ऐसे अनेको कहानियाँ है जिसने स्वच्छ भारत अभियान को विश्व का सबसे असरदार बेहेवियर चेंज का आंदोलन बना दिया है उसमे आपके घर के बच्चों का भी योगदान है । लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया में किसी टूटे हुए शौचालय और कचरे को ढेर दिखाकर इस पुरे अभियान को फ्लॉप साबित करने की जी तोड़ कोशिश भी हुई है तो कही लाभार्थी को मिलने वाली सरकारी मदद में हुए घोटाले को सामने लाकर पुरे अभियान पर प्रश्नचिन्ह लगाने का षड़यंत्र भी हुआ है। सिस्टम में स्वछता के लिए ऐसी खबरे जरुरी है लेकिन इस आड़ में अभियान को नाकामयाब बताने की मानसिक गंदगी में भी स्वच्छता जरुरी है।
पिछले महीने टीवी की खबरों के शोर के बीच और बड़े बड़े टीवी पैनलिस्ट के आत्मुग्ध ज्ञान प्रवाह में हमने कभी ग्राम स्वराज अभियान का जिक्र नहीं सुना होगा और न ही 115 एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट की खबरे देखी होगी। नक्सल प्रभवित झारखण्ड के पाकुड़ जिला सुर्खियों में 2013 में आया जब जिले के तेजतर्रार एस पी अमरजीत बलिहार और उनके साथी पुलिसकर्मियों को नक्सलियों ने घात लगाकर मार दिया था या फिर पिछले दिनों जब वरिष्ठ सामाजिक नेता स्वामी अग्निवेश एक भीड़ के गुस्से का शिकार हुए थे। लेकिन मीडिया में पाकुड़ के मौजूदा डी एम दिलीप झा की चर्चा शायद ही सुनी हो। पी एम मोदी ने जब देश के 115 अति पिछड़े जिले को एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट का नाम दिया और इन पिछड़े जिले के डी एम से सीधा संवाद करके उन्हें कुछ टिप्स भी दिया था और कुछ मोटिवेशन भी तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि देश की सुस्त और फाइलों में उलझी नौकरशाही कभी ऐसी चुनौती स्वीकार करेगी लेकिन पाकुड़ की कहानी आज बदलते भारत की एक नयी तस्वीर पेश कर रही है। जिले का लिटीपारा ब्लॉक के पहाड़िया आदिवासी गांव मुकरी आज तमाम बुनियादी सुविधाओं से संपन्न है। हर घर में नलका और शौचालय ,पक्की सड़के ,हर घर में बिजली तो सिलाई मशीनों पर थिरकती बेटियों के पाँव मानो एक नए जीवन का उत्सव मना रहा हो। हर घर में सील्ड गेहूं और चावल की बोरी हर महीने घरतक पहुंच जाती है इसके लिए किसी एल जी के परमिशन की जरुरत नहीं है। बच्चो के टीकाकरण ,बैंक अकाउंट से लेकर जातिप्रमाण पत्र जैसी तमाम सरकारी सुविधाए डोर सर्विस है। पाकुड़ में ऐसे दर्जनों आदिवासी गाँव जहाँ लोगो को पहुंचना मुश्किल और जोखिम भरा था आज जिला मुख्यालय से कनेक्टेड है।
गांधी जी का मानना था कि भारत के विकास का रास्ता गाँव से निकलता है। आज ग्राम स्वराज अभियान ने उस सपने को साकार किया है और सपने को साकार करने में दिलीप झा,रंजीत कुमार ,कपिल अशोक जैसे दर्जनों डीएम अपने नए नए आइडियाज को ग्राम स्वराज में जोड़ा है जनभागीदारी को विकास की गाथा से जोड़कर अपने को लाटसाहब के बदले जनसेवक बना लिया है। लेकिन बदलते भारत की यह तस्वीर न तो मीडिया में है न ही संसद की चर्चा में। संसद की 12 घंटे की बहस मीडिया में सिर्फ राहुल गाँधी की झप्पी और आँखों की मटकी को लेकर हुई तो पी एम् मोदी के एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट की चर्चा को 2019 के चुनावी एजेंडे का नाम दिया गया। लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष यह चर्चा करना भूल गए कि राहुल गाँधी ,सोनिया गाँधी से लेकर बीजेपी सरकार के तमाम मंत्रियों और 700 से अधिक सांसदों ने अपने अपने क्षेत्र में एक एक गाँव गोद लिया था लेकिन किसी भी गाँव की सूरत इन चार सालों में नहीं बदली। यह कमाल उसी सिस्टम का है जो महज पांच महीने में देश के 22000 गाँव में केंद्र सरकार के सात कल्याणकारी योजनाओ को शतप्रतिशत लागू कर दिया है जहा हर के घर में गैस कनेक्शन ,बैंक आकउंट बिजली और शौचालय की सुविधा ,पेंशन और बीमा योजना शत प्रतिशत लागू कर दिया गया है। कौन पास और कौन फेल यह आपको तय करना है। Vinod Mishra
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