जनसँख्या बिस्फोट या दोगली सियासत का नतीजा


विश्व जनसँख्या दिवस पर भारत में भी बढती आवादी को लेकर चिंता व्यक्त की गई । लेकिन चिंता व्यक्त करने का अंदाज़ कुछ निराला था । विज्ञानं भवन के शानदार हाल में बढती आवादी की चर्चा के बीच हैल्थ मिनिस्टर गुलाम नबी आजाद की तारीफ़ और उनकी क्षमता का यशोगान होता रहा लेकिन पहल की बात कही खो गई । मंत्री के पास समस्या के समाधान के लिए कई उपाय थे कई फोर्मुले थे लेकिन सबसे असरदार उपाय यह था कि गाँव में बिजली पहुचने चाहिए ,टेलीविजन पहुचने चाहिए ताकि लोग मनोरंजन के दुसरे विकल्प में मसरूफ हो सके । उन्होंने कानून का सहारा लेकर जनसंख्या पर नियंत्रण की बात को पुरी तरह से खारिज किया । सरकार के पास कोई ठोस निति नही है ,जनसँख्या रोकने की दृढ़ इच्छाशक्ति नही है इस हालत में जनसँख्या पर कैसे कंट्रोल हो ये एक बड़ा सवाल है । संसद में इस समस्या को लेकर बहस होनी चाहिए लेकिन सब खामोश है ।
जनसँख्या की भयावहता को इस तरह समझा जा सकता है । पूरी दुनिया का महज २.४ फीसद क्षेत्र भारत के पास है जबकि जनसँख्या के मामले में भारत का यह सरोकार १७ फीसद से ज्यादा है । यानि एक अरब १४ करोड़ ५० लाख की आवादी को लेकर हम सिर्फ़ चीन से पीछे रह गए है । उम्मीद की जा सकती है कि २०३० तक हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे । देश का हर राज्य आकर के ममाले में भले ही छोटे हो लेकिन जनसँख्या के मामले में वे कई देशों से आगे है । मसलन उत्तर प्रदेश की जनसँख्या लगभग १८ करोड़ है जो ब्राजील से भी ज्यादा है । महाराष्ट्र की आवादी १० करोड़ है जो मेक्सिको से ज्यादा है । बिहार की आवादी जेर्मनी से ज्यादा है । वेस्ट बंगाल ने अपने ८ करोड़ की आवादी को लेकर विएतनाम को पीछे छोड़ दिया है । आंध्र प्रदेश फिलीपींस का मुह चिढा रहा है । मध्य प्रदेश ने अपने लगभग ७ करोड़ की आवादी के साथ थाईलैंड को पीछे छोड़ दिया है । तमिलनाडु जनसँख्या के मामले में सबसे ज्यादा अनुशाषित राज्य माना जाता है लेकिन उसने फ्रांस से बड़ी आवादी पायी है । राजस्थान की आवादी इटली से ज्यादा है । तो गुजरात की आवादी साउथ अफ्रीका से ज्यादा है । उड़ीसा की आवादी अर्जेंटीना से ज्यादा है । तो केरल कनाडा से आगे है । झारखण्ड अपनी तीन करोड़ की आवादी को लेकर उगांडा से आगे है वही आसाम तीन करोड़ की आवादी के साथ उज़बेकिस्तान से आगे है । सबसे छोटी आवादी वाला राज्य उतरांचल आस्ट्रिया से कही आगे है । इस तरह कई देश भारत में मौजूद है लेकिन संसाधन के ममाले में हम इन मुल्कों से कही पीछे है । पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद की इस चिंता को समझा जा सकता है कि संसाधन और क्षेत्र मामले में अमेरिका हमसे कई गुना आगे है लेकिन जनसँख्या के मामले में कई अमेरिका भारत में मौजूद है । इस तरह सिमित संसाधन के बीच यह मुल्क इतनी बड़ी आवादी का बोझ ढो रहा है । आंकडो के खेल में बगैर उलझे हम कह सकते है हालिया बजट में सबसे कम प्रावधान हैल्थ सेक्टर के लिए है । जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली स्थित एम्स आना पड़ता है इस हालत मे जनसँख्या नियंत्रण के ताई सरकार की चिंता को समझा जा सकता है । ग्रामीण इलाके में आज भी शहरों की अपेक्षा मृतुदर ज्यादा है आज भी प्रसव काल में १००० मे ११० महिलाये दम तोड़ देती है । वहां आज भी शिशु मृतुदर १०० मे ६ है इस हालत में जनसँख्या को रोकना और इस समस्या को लेकर लोगों को समझाना कितना आसन होगा यह समझा जा सकता है । राज्यों में आंगनबाडी से लेकर आशा जैसी कई योजनाये चलायी जा रही है । आशा और आंगनबाडी की सेविकाएँ आज भी १००० -१५०० रूपये मासिक तनखाह के लिए जद्दोजहद कर रही हैं लेकिन उन्ही पर पुरे परिवार कल्याण योजनाओं की जिम्मेदारी सौप दी गई है ।
अति उत्साह में संजय गांधी ने इस दिशा में जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की तो उन्हें अतिवादी कहा गया । लेकिन सवाल यह है की इस मुल्क की इतनी बड़ी समस्या की जिम्मेदारी किस पर छोड़ा जाय । उन लोगों पर जो आज भी संतान को इश्वर और खुदा की मेहरवानी मानते है या उन लोगों पर जो नश्वंदी के ख़िलाफ़ फतवा जारी करते है । भोले भाले ग्रामीण लोगों के बीच जनसँख्या बिस्फोट की चर्चा किए बगैर अगर हमारी सरकार ५ स्टार होटलों में एक दुसरे की पीठ थपथपा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है तो समस्या के प्रति सरकार की गंभीरता को समझा जा सकता है । जिला बारमेर के कलेक्टर का सुझाव माननीय मंत्री सहित सबको नागवार गुजरा ,कलेक्टर ने जोर देकर कहा की सरकार जिन्हें सहूलियत देती है वहां इसके लिए कुछ शर्त जरूर रख सकती है । यानि परिवार नियोजन नही तो इंदिरा आवास ,रोजगार गुअरेंटी और दूसरी सहूलियत नही ॥ सरकार के लिए यह सुझाव बेतुका है तो फ़िर सरकार के पास क्या सुझाव है इसका कोई खुलासा नही । परिवार नियोजन की बात करते ही सरकार के हाथ पो क्यों फूलने लगते है ये एक बड़ा सवाल है । लोग जानते है बगैर हेलमेट पहने बैक चलाने से उनकी जान भी जा सकती है लेकिन लोगों ने तब तक हेलमेट पहनना नही शुरू किया जब तक उन्हें जुरमाना न लगाया गया हो । यह इस देश की फितरत में शामिल है । इसलिए वोट की सियासत से ऊपर उठकर सरकार को कुछ ठोस पहल करनी होगी । लेकिन जब तक परिवार नियोजन का नाम बदल कर परिवार कल्याण करने की सियासत होती रहेगी तब तक इस दिशा कोई उम्मीद करना सम्भव नही है ।


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