आज़ादी के 70 साल : देशवासी होने का कुछ कर्तव्य भी है
आज़ादी के 70 साल ! और भारत ,कई दृष्टिकोण कई नजरिया ! ठीक वैसा ही जैसे सात अंधो ने एक हाथी के बारे में अपनी राय दी थी ,किसी ने हाथी को विशाल दीवार जैसा ,किसी ने उसके कान को छूकर बड़ा पंखा जैसा जानवर बताया। . अपने अनुभव से सबने हाथी का सही आकर बताया था लेकिन समग्रता में ही इनके अनुभव को हाथी कहा जा सकता था। आज़ादी के 70 साल में देश ने काफी तरक्की की है ऐसी तरक्की की आज हर भारतवासी चलता फिरता "प्रेस" हो गया है और हर कोई अपनी राय सार्वजानिक कर रहा है। यही तो था आज़ादी का संकल्प जिसके लिए गाँधी महात्मा बने और हज़ारो ने अपने प्राणो की आहुति दी। लेकिन एक सवाल यक्ष प्रश्न बनकर आज भी खड़ा है कि आर्थिक आज़ादी के बगैर राजनितिक आज़ादी या मुहं खोल कर किसी को गरियाने की आज़ादी सार्थक है ? आपका जवाब जो भी हो लेकिन एक राष्ट्र के रूप में आज़ादी के नाम पर मीडिया-सोशल मीडिया में बे सिर -पैर का शोर ने आज़ाद भारत की छवि को धूमिल किया है।
मौलिक अधिकारों को लेकर रात में भी अदालत लगवाने वाले लोग कभी संविधान के मौलिक कर्तव्यों को लेकर कोर्ट गए हैं ? तो क्या आज़ादी का मतलब आज सिर्फ सत्ता पर कायम होना और जो सत्ता में है उसे हर हाल में बेदखल करना है ? इन वर्षो में दर्जनों सरकारे आयी गयी लेकिन मुश्किल से कुछ नाम है जो लोगों के जीवन पर अमिट छाप छोड़ गए और सही मायने में उन्होंने आज़ादी के करवा को आगे बढ़या। देश में खुशहाली जरूर आयी। लेकिन क्यों 70 साल में देश अबतक खुले में शौच से मुक्त नहीं हो पाया था। क्यों इन 70 सालों में हर गाँव और हर घर में बिजली नहीं पहुँच पायी थी ? जल संसाधन से मालामाल इस देश के कई इलाको में क्यों प्यास बुझाने को पानी नहीं मिलता। क्यों हर खेत में पानी नहीं पहुंचा। क्यों गरीब का बच्चा स्कूल से मरहूम रह गया ? क्यों आज भी हर के पहुँच में अस्पताल नहीं है ? कारण सियासी दलों ने आज़ादी का मतलब सिर्फ वोट समझा और जनता को वोट में तब्दील करने की कोशिश ने प्रजातंत्र को बाज़ार बना दिया।
दलित परिवार और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बन जाते हैं ,एक साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो कहा जाता है कि यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है। ऐसे ही हम्बल बैकग्राउंड से आने वाले दर्जनों नेता है/थे अटल जी ,आडवाणी जी ,लालू जी ,मुलायम सिंह जी ,मायावती जी ,ममता जी ,करूणानिधि जी ,भैरो सिंह जी ऐसे कई नाम है लेकिन ऐसा क्यों होता है इनमे से कम ही कर्पूरी ठाकुर बनता ,है जिसे जो भी मौका मिला देश -समाज के लिए किया लेकिन खानदान के लिए वोट बैंक/पूंजी बनाने की कभी कोशिश नहीं की। क्यों राजनीतिक परिवार प्रजातंत्र पर भार बन जाता है ? क्यों इस देश में घिसे पिटे सिस्टम 70 सालो से चल रहे है और इसमें सुधार की कोई कोशिश नहीं होती है?
लाखो शहीदों के बलिदान से हमें आज़ादी मिली है जिसमे हर मजहब ,हर जाति -सम्प्रदाय की भागीदारी थी। जाहिर है हर की आज़ादी सुनिश्चित हो यह इस देश की परम्परा भी है और कर्तव्य भी। लेकिन जब भी इस देश की सियासत ने देश के बदले व्यक्ति ,सम्प्रदाय और जाति को सामने रखा है तब तब यह देश किसी न किसी साजिश का शिकार हुआ है। अनेको धर्म ,भाषा ,संस्कृति वाले इस देश की पहचान सिर्फ भारतीयता है। इसमें किसी से कोई श्रेष्ठ नहीं है। भारत में जन्मा हर कोई भारतवासी है.. उसकी श्रेष्ठता इस बात से है कि उसका योगदान क्या है ? उसकी श्रेष्टता इस बात से नहीं हो सकती कि उसने लिया क्या है। भारत के लिए सरहद पर कुर्वान होने वाले जवानो की श्रेष्टता को हम सलाम करते हैं। देश की आज़ादी और सम्प्रभुता को अक्षुण्ण बनाये रखने वाले इन बीर सपूतो का देश कर्जदार होता है। देश कर्जदार उनका भी है जो अपनी मिहनत से अन्न उपजा कर 130 करोड़ भारतीयों का पेट भरते है. . देश कर्जदार है उनका जिनके अनुशंधान से देश का गौरव बढ़ा है। देश कर्जदार है उन नीति निर्माताओं का जिन्होंने भारत को विकसित करने में योगदान दिया है। अपने मौलिक अधिकारों के लिए सजग होना आज़ादी की पहली शर्त है और इस मामले में देश सजग हुआ है लेकिन देशवासी होने का कुछ कर्तव्य भी है जिसे याद रखना जरुरी है। जय हिन्द !
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