खुशफहमी कुछ देर के लिए ही सही पालने में दिक्कत क्या है ?

 
इमरान अहमद खान नियाज़ी पाकिस्तान के 22 वे प्रधानमंत्री के रूप में काबिज हो चुके हैं। लगातार 26 साल के सियासी जद्दोजेहद के बाद इमरान खान ने  अंदर बाहर का समर्थन जुटा कर एक नया पाकिस्तान बनाने का अज्म दुहराया है। लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि वजीरेआजम इमरान खान की सत्ता बहैसियत इस्लामाबाद के मेयर तक ही रहेगी या फिर उनका हुक्म  रावलपिंडी में भी सुना जायेगा। सवाल ज्यादा हैं  जवाब कम। अल्लाह ,आर्मी और अमेरिका के भरोसे पाकिस्तान अपने अस्तित्व बचाने  की कोशिश में हर हथकंडा अपनाता रहा है लेकिन आज पाकिस्तान  जिस  मोड़ पर खड़ा है उसमे एक रास्ता जरूर तय करना होगा। वह रास्ता या तो  अमन का होगा जिसमे भारत के साथ दोस्ताना ताल्लुकात बढाकर मुल्क में रोजगार और कारोबार की नयी शुरुआत होगी और एक नया पाकिस्तान बनेगा  या फिर चीन की कठपुतली बनकर सिर्फ  फ़ौज के एजेंडे को ढोएगा। 

भरी दुपहरी में अँधियारा ,सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़े ,बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएं।। अटल बिहारी वाजपेयी  

1999  से लेकर 2004  तक भारत -पाकिस्तान के रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने निरंतर प्रयास किया था लेकिन हर बार वे अपने जिद्दी पडोसी से  उन्होंने धोखा ही खाया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी वाजपेयी की डिप्लोमेसी को आगे बढ़ाते हुए रिश्ते सुधारने की हरसंभव कोशिश की।  लेकिन पाकिस्तान की फ़ौज अपनी आदतों से बाज नहीं आयी। दुनिया की हालात  बदली है ,पाकिस्तान में निज़ाम बदला है। नवजोत सिंह सिद्धू की तरह  खुशफहमी कुछ देर के लिए ही सही पालने में दिक्कत क्या है ?

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